बुधवार, 13 नवंबर 2013

प्रीतम के पग परसिये ३/१५३

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विरह का अंग ३/१५३*
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दादू - प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखन का चाव ।
तहँ ले शीश नवाइये, जहां धरे थे पाँव ॥१५३॥
दृष्टांत - 
शिव मग जात नमात शिर, देख उभय सु स्थान ।
त्यों गुरु दादू कांकरे, नमत सदा सम्मान ॥१७॥
एक समय भगवान् शंकर और पार्वती मार्ग से जा रहे थे । एक स्थान पर आकर शंकरजी उस स्थान को बारम्बार प्रणाम करने लगे और वहां की धूलि अपने मस्तक के लगाई । फिर कु़छ दूर चल करके पूर्व के समान एक स्थान पर प्रणामादि किये और चल दिये । 
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फिर आगे एक स्थान पर से एक मुठ्ठी रेत की उठाकर अति शीघ्र चले और पार्वती को कहा - यहां से शीघ्र दौड़कर आगे चलो । फिर जब आगे जाकर रुके तो पार्वती ने पू़छा - आज आप ये क्या लीलायें कर रहे हैं । पूर्व दो स्थानों पर कु़छ भी नहीं था तो भी अति भक्ति से आप प्रणामादि करते रहे और तीसरे स्थान से शीघ्रता से चले और मुझे भी कहा - दौड़कर आगे चलो । 
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उक्त तीनों स्थानों में कु़छ था भी नहीं फिर भी आपने उक्त लीलायें क्यों की थी ? शंकरजी - पहले स्थान पर दश हजार वर्ष पूर्व में एक संत को भगवान् ने दर्शन दिया था । इससे वह भूमि पवित्र थी अतः प्रणाम करने योग्य ही थी । दूसरे स्थान पार दश हजार वर्ष आगे एक संत भजन करेंगे । इस से वह भूमि भी प्रणाम करने योग्य ही थी । तीसरे स्थान पर पहले पशु काटे जाते थे । इससे वह भूमि अपवित्र थी । 
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इसी से मैं शीघ्र चला था और तुम को भी दौड़ कर आगे चलने को कहा था । पार्वती - यह मैं नहीं मानती भूमि में क्या पवित्रता और अपवित्रता होती है । तब शंकरजी ने पशु काटने के स्थान की रेती की मुठ्ठी भूमि पर डालकर कहा - इस पर खड़ी हो जाओ । उस पर खड़ी होते ही मन में संकल्प हुआ कि मुझे नारदादि ने बहुत समझाय था कि शंकर से विवाह करने का आग्रह छोड़ दे किन्तु मैंने किसी को भी नहीं मानी । तब ही अब इनके साथ दुःख भोग रही हूँ ।
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तब शंकरजी ने कहा - क्या विचार कर रही हो ? हटो यहां से, वहां से हटते ही पार्वती के वे अनुचित विचार हट कये । शंकरजी ने कहा - देखा, अशुद्ध भूमि पर ठहरने का दोष । ऐसे ही शुद्ध भूमि पर शुद्ध विचार होते हैं । पार्वती ने मान लिया । जहां प्रीतम भगवान् ने चरण धरे हों वह भूमि जहां चरण रखे हों, उस भूमि का दर्शन और उसे प्रणाम करना ही चाहिये । दादूजी जब तक अहमदाबाद में रहे तब तक जहां कांकरिया तालाब पर उनको वृद्ध भगवान् के दर्शन हुये थे, उस भूमि को वे नित्य प्रणाम करने जाते थे ।

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