शनिवार, 2 नवंबर 2013

दादू ऐसे महँगे मोल का २/३६


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साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*स्मरण का अंग २/३६*
*दादू ऐसे महँगे मोल का, एक श्वास जे जाय ।* 
*चौदह लोक समान सो, काहे रेत मिलाय ॥३६॥* 
दृष्टांत - 
कश्यप चौदह लोक का, श्वास सटे दे राज ।
जाट खेत का दूसरा, लाल गमाई बाज ॥७॥(बाज - व्यर्थ) 
कश्यप ऋषि के देहान्त का समय आया तो देवता आदि ने कहा - सेवा बतावें । कश्यप - मेरी आयु बढ़ा दो । देवतादि - यह तो हम नहीं कर सकते । कश्यप - एक श्वास ही दे दो । तह भी सब मौन ही रहे । तब कश्यप ने कहा - देखो, श्वास इतना अमूल्य है कि चौदह लोकों का राज्य देने पर भी नहीं मिलता है । इससे एक श्वास इतना अमूल्य है कि कीमत चौदह लोकों के मूल्य से भी अधिक है । ऐसे श्वासों को तुम विषय भोग रूप रेत में क्यों मिलाते हो ? अर्थात प्रत्येक श्वास के साथ हरि भजन करना चाहिये । 
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द्वितीय दृष्टांत - साखी के उत्तरार्ध पर है - एक जाट का खेत नदी के तट पर ही था । वह एक दिन प्रातः शौच क्रिया करके नदी की तीर पर गया तो नदी के कटाव से कटे हुये किनारे में उसे एक हँडिया सी दिखाई दी । उसे उसने निकाल कर उसका मुख खोला तो वह लालों से भरी चरी मिली । वह लाल को तो पहचानता नहीं था । अतः उसने गोल - गोल लाल पत्थर समझे और पक्षियों को उड़ाने के लिए ले आया । 
नदी उसके खेत के पास धनुषाकार खेत को घेरे हुये थी । वह अपने खेत के मध्य बँधे हुये डामचे पर बैठकर उन लालों को गोफिये में डाल डालकर पक्षियों को उड़ाने लगा । इसे से पुनः वे सब लाल नदी के प्रवाह में पड़कर बह गये । एक को उसका छोटा बच्चा उठा ले गया था । अतः वह घर में पहुंच गया । 
एक दिन जाटनी के पास नमक नहीं था । इससे उसने सोचा - इस लाल और चिकने पत्थर से जैसे मेरा बच्चा खेलता है, वैसे ही दुकानदार का बच्चा खेलेगा । अतः इसके बदले ही नमक लेऊं । गई, तब उसी दुकान पर एक जोहरी आया था । उसने इस के हाथ में लाल देखकर कहा - ला मुझे दिखा । जाटनी ने दे दिया । जौहरी को वह एक लाख का ज्ञात हुआ । तब उसने कहा - तुम क्या लेने आई हो ? जाटनी - नमक । जौहरी ने उसे पांच सेर नमक दिलाकर फिर कहा । तुमको जो भी चीज चाहे, उसके लिये मेरी दुकान पर आ जाया करो । मैं तुम को सब कु़छ दिला दिया करुंगा । यह पत्थर मुझे दे दो । उसने दे दिया, अब जौहरी से इच्छानुसार वस्तुयें लाने लगी । 
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जाट के लिये भी अच्छा भोजन ले जाने लगी । कपड़े भी सुन्दर बना लिये । जाट ने पू़छा - इतने रुपये तेरे पास कहां से आये । जाटनी ने कहा - घर पर चल कर देखो उसने पू़छा - यह सामान कैसे लाई । जाटनी ने कहा - आप के डामचे के नीचे एक लाल और गोल पत्थर पड़ा था । उसे आपका बच्चा उठा लाया था । उसी का यह प्रताप है । यह सुनते ही वह यह बोलता हुआ - ‘ऐसे मैनें बहुत गमाये’ पृथ्वी पर पड़ गया, वैसे ही अमूल्य श्वासों को व्यर्थ खोकर अन्त में प्राणी पश्चात्ताप करता हुआ मर जाता है

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