॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*दादू सती तो सिरजनहार सौं, जलै विरह की झाल ।*
*ना वह मरै न जलि बुझै, ऐसे संगि दयाल ॥९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सती और शूरवीर भक्त, विरह अग्नि से अपने आपा को जलावे, उसी का पतिव्रत श्रेष्ठ है । और फिर वह अखंड ब्रह्म में ही अभेद होता है । इसी प्रकार सती पतिलोक में पति के साथ सुहाग प्राप्त करती है, उसे बार - बार जलना - मरना नहीं पड़ता ॥९॥
सती सुरपुर भुगति कै, बहुरि औतरैं आइ ।
जगन्नाथ जन राम का, रामहिं माहिं समाइ ॥
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*जे मुझ होते लाख सिर, तो लाखों देती वारि ।*
*सह मुझ दिया एक सिर, सोई सौंपै नारि ॥१०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! पतिव्रत शूरवीर संत आत्मा कहते हैं कि हे परमेश्वर रूप पति ! यदि हमारे लाख सिर भी होते तो हम लाखों सिर ही आपके न्यौछावर कर देते । परन्तु हे स्वामी ! आपने मुझे एक ही सिर दिया है । मैं आपकी प्राप्ति के लिये वह भी आपके अर्पण करती हूँ ॥१०॥
(क्रमशः)
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