शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

= ७२ =


#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
ज्ञान परिचय
जीयें तेल तिलनि में, जीयें गंध फूलनि ।
जीयें माखणु खीर में, ईयें रब्ब रूहनि ॥५॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जिस प्रकार तिलों में तेल व्याप्त है, पुष्प में गन्ध व्याप्त है, वैसे ही दूध में घृत एक रस रहता है । इसी प्रकार सर्व जीवों में और सम्पूर्ण संसार में चैतन्य स्वरूप ब्रह्म व्याप्त है ॥५॥
तिल - मध्ये यथा तैलं काष्ट - मध्ये हुताशनम् । 
पयमध्ये यथा घृतं, देह - मध्ये देवेश्‍वरः ॥

ईयें रब्ब रूहनि में, जीयें रूह रगनि ।
जीयें जेरो सूर मां, ठंडो चन्द्र बसंनि ॥६॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जिस प्रकार परमेश्‍वर जीव में व्यापक है, वैसे ही जीव शरीर के रोम - रोम में व्यापक है । और जैसे सूर्य में प्रकाश व्यापक है, चन्द्रमा में शीतलता व्यापक है, इसी प्रकार साक्षीभाव से सर्व जीवों में एकरस ब्रह्म व्यापक है ॥६॥
इन्दव छन्द
ज्योंतप तेज प्रभाकर पूरण, सोम सुधा हिम सीत पसारो । 
तेल बसै तिल, गन्ध रसाति में, दूध रहै घृत माहिं विचारो ॥
पाहन पावक, सूत सदा पट, वृक्ष बसै रस, सिंगरफ पारो । 
जीव में शीव सही विस्तीरण, आतम राम हरी जु हमारो ॥
(श्री दादू वाणी ~ विचार का अंग)

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