शनिवार, 16 नवंबर 2013

निर्संध नूर अपार है ४/१३०


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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/१३०*
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*ब्रह्म सुनि तहँ क्या रहै ? आतम के अस्थान ?*
*काया अस्थल क्या बसै ? सतगुरु कहो सुजान ॥१३०॥*
प्रसंग कथा ब्रह्म शून्य तहँ क्या रहे इस १२७ की साखी से, १३० साखी तक वीरबल के प्रश्‍नों के उत्तर है । इनका अर्थ दादूगिरार्थ प्रकाशिका दादूवाणी की टीका में देखें ।
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आतिसखाने स्थान में दादूजी के पास अकबर बादशाह ने तीन व्यक्तियों को भेजा था । अब्बुलफजल, वीरबल और तुलसी ब्राह्मण वीरबल ने जो प्रश्‍न किये थे उनका प्रसंग ऊपर बता दिया है । अब्बुलफजल को अकबर बादशाह ने कहा था कि ये मेरे प्रश्‍न दादूजी से पू़छना और इनके वे उत्तर दें वे मुझे सुनाना । इन प्रश्‍नों के उत्तर से पता लग जायगा कि वे किस कोटि के संत हैं । फिर मैं उन से सीखूंगा । 
अब्बलफजल ने जो प्रश्‍न किये थे वे अकबर बादशाह के ही थे । वे प्रश्‍नोत्तर १३१ की साखी से १३४ की साखी तक है । १३५ की साखी से १३९ की साखी तक विशेष रूप से अकबर बादशार को समझाने के लिये मुसल्मान धर्म को चार अवस्थाओं का वर्णन है । १४० से १४४ तक उक्त अवस्थाओं को हिन्दी भाषा की साखियों से समझाया है ।
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मुसल्मान धर्म की चार मंजिलें - 
शरीअत सेवं शरीर की, तरीकत दिल अरवाह ।
मारफत मांही रहे, हकीकत मिलिया जाय ॥१॥
चार घाट के चारों बन्दे, तिन से आय करी सैतानी ।
मुक्की लाई गंदे । शरीअत - 
मुक्की की मुक्की दिई, रोष न कीया कोय ।
शरअ मांहीं सावधान, धणी न हासिल होय ॥१॥
तरीकतवाला ज्वाब दे, ज्यों की त्यों लय लाई ।
जवाब दियां भी अंतराय है, स्मरण किया न जाई ॥२॥
मारफत का मामला, टुकु नेनों देखा ।
अजाजील की चोट से, लै तुड़ाय पेखा ॥३॥
पय पाणी अरु लवण ज्यों, मिश्री जल जैसे ।
ऊंडी गति हकीकत की, न्हाले चोख कैसे ॥४॥
(क्रमशः)

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