शनिवार, 16 नवंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(पं.दि.- २३/३२)

卐 दादूराम~सत्यराम 卐

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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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पंचम दिन ~
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वा. वृ. चौ. -
“सखि ! तू वर प्रिय बात बतावे, 
मेरे मन को, भी अति भावे ।
किन्तु होत इक पश्‍चात्तापा, 
गई आयु में कीन्हे पापा ॥२३॥”
दो. -
“सखी ! बता जिमि हो सके, उनसे मेरी मुक्ति ।
सोई साधन करूँगी, सुनकर तेरी उक्ति ॥२४॥”
आं. वृ. -
“पुण्य उदय तेरे हुये, सत्संगति में प्यार ।
करन लगी तू सहज ही, होगी अघ से पार ॥२५॥
आसुर गुण तुझको कहे, उनका करना त्याग ।
समय हो गया आज जा, आना कल सह राग ॥२६॥”
आं. वृ. -
“सखी ! चित्त तो गमन का, करता है अब नांहि ।
पर, तव आज्ञा मान कर, जाती हूं घर मांहि ॥२७॥”
कवि-
कर प्रणाम बाहिर गई, अलसाई-सी सोय ।
आज उसे प्रतिकूल में, कोप हुआ नहिं कोय ॥२८॥
सरति सभी से काम ले, करती मधुर उचार ।
शांति पूर्ण होने लगा, सब घर का व्यवहार ॥२९॥
कामादिक के त्याग का, करती हुई विचार ।
सबको भोजन करा कर, कीन्हा शुद्ध अहार ॥३०॥
सोकर सुषुप्ति में गई, कर पूरा विश्राम ।
उठी प्रात ही शीघ्रतर, मुख से बोलत राम ॥३१॥
शौचादिक निबट कर, प्रभु पूजा के बाद ।
करन लगी घर काम सब, हर्षित त्याग विषाद ॥३२॥
इति श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता में पंचम दिन वार्ता समाप्त: । 
(क्रमशः)

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