सोमवार, 4 नवंबर 2013

= प. त./१२-३ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“पंचम - तरंग” १२/१३)* 
.
*माधो दास जी की व्रति दादू जी के चरणों में लीन* 
चरण - कमल पेखि, उपज्यो उछाह मन, 
जोरि पाणि कही ताहिं, देहु उपदेश को । 
स्वामीजी प्रसन्न होय, धरे शीश हाथ दोय, 
मंत्र हु उच्चार करि काटत कलेश को । 
जैसो जड भरत ज्ञान, ऐसो गुरु दियो ध्यान, 
मेटे भव ताप सब, शंक नाहिं शेष को । 
बीसवें वर्ष मोहे, सांभर में भेंटे गुरु, 
माधो कहे अहोभाग्य, पावत तपेश को ॥१२॥ 
हाथ जोड़कर प्रार्थना की - हे दयालु ! कृपा करके उपदेश दीक्षा दीजिये । स्वामीजी ने शिर पर हाथ धरकर प्रसन्नतापूर्वक गुरु मंत्र का उपदेश दिया, जिससे सारे क्लेश समाप्त हो गये । जड़भरत के समान ज्ञान का ध्यान देकर सभी भव ताप मेट दिये । अब कोई शंका ही शेष नहीं रही । बीस वर्ष की आयु में मुझे गुरु प्राप्ति हुई । माधव का अहोभाग्य उदय हुआ । श्री दादूजी जैसे तपस्वी की गुरु रूप में प्राप्ति हुई ॥१२॥ 
*इन्दव* 
*श्री दादू जी के बचनों से अमृत की वर्षा* 
सम्वत् चंद ॠतु चक्षु निधि, 
कार्तिक दूज मिले जन बन्धू । 
जाप दियो पुनि ज्ञान गिरा गुण, 
दीन दयालु सबै सुख सिन्धू । 
शरद ॠतु बरसे अमि पोषत, 
आश्विन मास जु पूरण चन्दु । 
स्वामि जु बैन सुधा बरसें मुख, 
शीतल होत जु संत आनन्दू ॥१३॥ 
विक्रम संवत् १६२९ की कार्तिक द्वितीया को दीनबन्धु गुरुदेव की प्राप्ति हुई थी । सुख - सिन्धु दीनदयालु ने अपनी वाणी से ज्ञान देकर जाप की विधि बताई । जैसे शरद ॠतु में आश्विन मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा अमृत वर्षा कर सब को आनंदित करता हैं वैसे ही सन्त श्री दादूजी ने अपनी अमृत वाणी से ज्ञानामृत की वर्षा की । संतों की ज्ञान पिपासा शीतल की ॥१३॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें