सोमवार, 4 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(१३/१४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरवीर कायर*
*शूरा चढ़ संग्राम को, पाछा पग क्यों देहि ?*
*साहिब लाजै भाजतां, धृग् जीवन दादू तेहि ॥१३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चा शूरवीर युद्ध करने को चढ़ाई करके, फिर शत्रुओं की सेना को देखकर वापिस नहीं लौटता । वह जानता है कि अब मैं युद्ध से भागूँगा, तो मेरे राजा और सेनापति को लाज आवेगी और मेरे जीवन को भी लोग धिक्कार देंगे । इसी प्रकार सच्चा शूरवीर भक्त संसार से प्रीति हटाकर परमेश्‍वर की अनन्य भक्ति धारण करता है । फिऱ वह मायावी पदार्थों की ओर नहीं जाता है ॥१३॥
तृणं द्रव्यं विरक्तस्य शूरस्य जीवनं तृणम् । 
ब्रह्मचारी तृणं नारी, जगत्तृणं च ज्ञानिनः ॥
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*सेवक शूरा राम का, सोई कहेगा राम ।*
*दादू सूर सन्मुख रहै, नहिं कायर का काम ॥१४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम का सच्चा शूरवीर भक्त है, वही राम का निष्काम स्मरण करेगा । मन इन्द्रियों को अन्तर्मुख करने वाला शूरवीर साधक ही राम के सन्मुख रहेगा । और सांसारिक सकामी पुरुष राम का निष्काम स्मरण, कभी भी नहीं कर पायेंगे ॥१४॥
कबीर भक्ति दुहेली राम की, नहीं काइर का काम । 
शीस उतारैं हाथ करि, सो लेसी हरि नाम ॥
सुन्दर तन मन आपनो, आवै प्रभु के काम । 
रण में तैं भाजै नहीं, करै न लोन हराम ॥
(क्रमशः)

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