गुरुवार, 7 नवंबर 2013

सबको सुखिया देखिये ३/११

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विरह का अंग ३/११*
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*सबको सुखिया देखिये, दुखिया नांहीं कोइ ।* 
*दुखिया दादू दास हैं, ऐन परस नहिं होइ ॥११॥* 
दृष्टांत - 
नृसिंह कहा प्रहलाद से, वर देऊ मैं तोहि । 
जगत सुखीकर ल्याव अब, दुखी मिल्यो नहिं मोहि ॥१॥ 
भगवान् नृसिंह ने खम्भ से प्रकट होकर हिरण्यकशिपु को मारा और परम प्रसन्न होकर प्रहलाद को कहा - तेरी इच्छा हो वही मांग ले मैं तुझे वर देता हूं । प्रहलाद ने मांगा - जगत के सभी प्रणियों को सुखी कर दें । नृसिंह - तुमको जो दुखी मिलें उन को यहां ले आओ, उनको सुखी कर दूंगा । 
प्रहलाद बहुत फिरे किन्तु दुःख निवृत्ति के लिये भगवान् के पास जाने को कोई भी तैयार नहीं हुआ । प्रहलाद आकर बोला - कोई भी नहीं आता । सो ही उक्त साखी में कहा है कि भगवान् को प्राप्ति के लिये तो भगवान् के भक्त ही दुखी होते हैं । सांसारिक प्राणी तो अपने को संसार में ही परम सुखी मानते हैं । 
*इश्क मुहब्बत मस्त मन, तालिब दर दीदार ।* 
*दोस्त दिल हरदम हजूर, यादगार हुशियार ॥६४॥* 
प्रसंग कथा - 
गुरु दादू से बादशाह, पू़छी साहिब राह । 
तब इस साखी से कही, यादी मारग जाहु ॥२॥ 
अकबर बादशाह ने सीकरी नगर में दादूजी से परमात्मा की प्राप्ति का साधन मार्ग पू़छा था । उसी के उत्तर में दादूजी ने उक्त साखी सुनाकर अकबर को समझाया था । 
(क्रमशः)

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