शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

निर्संध नूर अपार है ४/१०५



🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*परिचय का अंग ४/१०५*
.
*निर्संध नूर अपार है, तेज पुंज सब मांहिं ।* 
*दादू ज्योति अनन्त है, आगो पीछो नांहिं ॥१०५॥* 
दृष्टांत - 
रामचन्द्र अरु कृष्ण को, वानर गोपिन जोय । 
सब सन्मुख बोलत वचन, जाने थे सब कोय ॥५॥ 
उक्त १०५ की साखी के - “आगो पीछो नांहिं” पर दृष्टांत है - प्रवर्षण पर्वत पर जह हनुमानजी सीता को लंका में देख कर आये तब वहां एकत्र हुये असंख्य वानरों से अति अल्प समय में ही परामर्श किया था कि आज विजयदशमी होने से विजय मूहूर्त है । अतः आज ही लंका जाने को प्रस्थान किया जाय । उस समय सब वानरों ने राम को अपने सन्मुख ही खड़े होकर बोलते देखा था । उनकी पीठ किसी ने भी नहीं देखी थी । वैसे ही रास के समय सब गोपियों ने कृष्ण को अपने सामने ही मुख करे हुये देखा था । कृष्ण की पीठ किसी को भी नहीं दिखाई दी थी । जब आकार वाले अवतारों की भी उक्त दोनों समय में पीठ किसी ने भी नहीं देखी थी । तब निराकार परमात्मा का तो आगा, पीछा देख ही कैसे सकते हैं ? यही तात्पर्य - आगो पीछो नांहि का है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें