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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/२६१*
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*परिचय सेवा आरती, परिचय भोग लगाइ ।*
*दादू उस परसाद की, महिमा कही न जाइ ॥२६१॥*
दृष्टांत - कुवंरी से कुवंरा भया, लेत प्रसादी सी(थ) ।
राघव भिन्न न किजिये, पारस रूप अतीत ॥२२॥
ब्रह्म परिचय(साक्षात्कार) किये हुये एक संत एक बाजरा के खेत में पहुँच गये । खेत की रक्षा एक लड़की कर रही थी । संतजी को देखकर उसने श्रद्धा से प्रणाम किया फिर बाजरे के सिट्टों से बाजरा निकालकर संतजी के आगे रखकर कहा - भगवन् ! जीमिये । लड़की की श्रद्धा भक्ति देखकर संतजी ने परिचय(साक्षात्) भगवान् के भोग लगाया ।
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फिर स्वयं ने पाकर लड़की को दिया और कहा - तुम भी पाओ । लड़की ने कु़छ बाजरे के दाने खाये तह संतजी ने कहा - देखो, बच्चा भगवान् का प्रसाद कितना मधुर है इतना कहते ही लड़की लड़के के रूप में बदल गई । सोई साखी में कहा है - ब्रह्म परिचय संतों के परिचय भोग लगाते हुये प्रसाद की महिमा कहने में नहीं आती अर्थात् अत्यधिक है । देखो ब्रह्म और संत का प्रसाद पता ही लड़की से तत्काल लड़का बन गया ।
(क्रमशः)
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