रविवार, 24 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(५३/५४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरातन*
दादू माहीं मन सौं झूझ कर, ऐसा शूरा वीर ।
इंद्रिय अरि दल भान सब, यों कलि हुआ कबीर ॥५३॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! भीतर ही अर्थात् अन्तःकरण में ही शूरवीरता धारण करके झूझे, ऐसा शूरवीर इन्द्रिय रूपी शत्रुओं के दल को भान कहिये मार कर, कलिकाल में, कबीर जैसे शूरवीर हुए हैं ॥५३॥ 
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सांई कारण शीश दे, तन मन सकल शरीर ।
दादू प्राणी पंच दे, यों हरि मिल्या कबीर ॥५४॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर की प्राप्ति के लिये जीवनमुक्त पुरुष, अपना सम्पूर्ण शरीर, परमेश्‍वर के अर्पण कर देते हैं । और इसी प्रकार सूक्ष्म शरीर भी विचार द्वारा उसी में लय करके कबीर की तरह परमेश्‍वर में अभेद हो जाते हैं ॥५४॥
सुन्दर भजि भगवंत को, उधरे संत अनेक । 
सहीं कसौटी शीश परि, तजी न अपनी टेक ॥
(क्रमशः)

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