रविवार, 24 नवंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
भैया दुनिया की छोड़ो, 
कम्पयुटर भी RAM के बिना नहीँ चलता। 
तो बोलो "जय श्री राम" || 
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शब्दों माहिं राम धन, जे कोई लेइ विचार । 
दादू इस संसार में, कबहुं न आवे हार ॥२६॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वेद के महावाक्यों में और गुरु के शब्दों में रामधन भरा है । जो विचारवान् पुरुष इनका विचार करके ब्रह्मानन्द में मग्न रहता है, वह ऐसा विचारशील पुरुष इस संसार के आवागमन से सदा मुक्त रहता है ॥२६॥ 

दादू राम रसायन भर धर्‍या, साधुन शब्द मंझार । 
कोई पारखि पीवै प्रीति सौं, समझै शब्द विचार ॥२७॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सतगुरु ने अपने शब्दों में राम - रस रूपी रसायन भरके शब्द बोले हैं । उत्तम मुमुक्षु, विचारवान्, शब्द ब्रह्म के विचार द्वारा स्वस्वरूप का अनुभव करते हैं और अन्तरप्रीति से अभेद निश्‍चय रूप राम - रस पीते हैं ॥२७॥

शब्द सरोवर सुभर भर्‍या, हरि जल निर्मल नीर । 
दादू पीवै प्रीति सौं, तिन के अखिल शरीर ॥२८॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्मनिष्ठ गुरुदेव के शब्द रूप सरोवर में, ब्रह्मानन्द रूपी निर्मल नीर परिपूर्ण रूप से भरा हुआ है । उसको पीने वाले उत्तम साधकों के सम्पूर्ण शरीर, निर्विकार गुणातीत होकर ब्रह्मस्वरूप हो जाते हैं ॥२८॥ 

शब्दों मांहिं राम - रस, साधों भर दीया । 
आदि अंत सब संत मिलि, यों दादू पीया ॥२९॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संतों ने अपनी ब्रह्मवाणी रूप शब्दों में निर्गुण राम का भक्ति - वैराग्य - ज्ञान रूप रस भरा है । उन शब्दों से सृष्टि के आदि से अन्त पर्यन्त, सम्पूर्ण संतों ने उन शब्दों द्वारा ब्रह्मानन्द का अनुभव किया है । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि हमने भी उसी प्रकार अब उस राम - रस को पान किया है ॥२९॥ 
(श्री दादू वाणी ~ शब्द का अंग)

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