शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

= ६० =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*सांई सत संतोष दे, भाव भक्ति विश्वास ।* 
*सिदक सबूरी सॉंच दे, मॉंगे दादू दास ॥* 
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''बुलंद - संस्कार'' (Buland-Sanskaar) 
हर मानव की सोच का अपना नजरिया होता है वो उसे जेसे देखे संसार का हर भाव वेसा ही दिखता है ।
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भगवान राम को सबसे अधिक स्नेह उनके भाई भरत किया करते थे । जब राम जी ने वनवास स्वीकार किया तो भरत जी ने भी अपने को भी उन्हीं के समान मानकर अयोध्या नगरी का त्याग कर दिया और नंदी ग्राम में रहने लगे । अपना जीवन अपने भाई की तरह वनवासी बनकर बिताया । उन्होंने सारे राज सुखों का त्याग किया और अपने राम जी की चरण पादुकाओं की पूजा करते, गो मूत्र में बनाकर जो का दलिया खाते थे, वत्कल ही पहनते थे और पृथ्वी पर डाभ{एक प्रकार की घास} बिछाकर ही सोते थे । 
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जब भरत जी को ये पता लगा कि राम जी वापस आ रहे हैं उन्होंने उनकी चरण पादुकाओं को अपने मस्तक पर रखा और समस्त पुरोहितों सहित भगवान राम की अगवानी के लिए गए । भगवान राम को देखते ही उनके आंसू छलक गए अपने अंतस की वेदना वो छिपा न सके और अनन्य स्नेह से भाव विभोर होकर वे अपने भगवान के चरणों पे गिर पड़े । उन्होंने अपने राम के चरणों के सामने उबकी चरण पादुकाएं रख दी और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए भगवान ने अपने भरत को भाव विभोर होकर अपने गले लगा लिया और भरत जी ने अपने अश्रुओं से अपने राम जी का स्नेह अश्रुओं अभिषेक किया । 
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उनकी अपने राम के प्रति आस्था को देखकर आत्मा अनन्य भाव विभोर हो जाती है । अपने ईश्वर से इसी अनन्य भक्ति और स्नेह का आशीष मेरी आत्मा भी अपने आराध्य राम जी के चरणों के प्राप्त करना चाहती हैं ।
हे जगदपति ! मेरे राम !
मेरी ये प्रार्थना स्वीकार करना मुझे भी अपने जीवन में अपने वचनों, सत्य और विश्वास के लिए कठिन समय से लड़ने की शक्ति देना.. 
''बुलंद संस्कार''

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