गुरुवार, 7 नवंबर 2013

= ५७ =



#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू साधु गुण गहै, औगुण तजै विकार ।* 
*मानसरोवर हंस ज्यूं, छाड़ि नीर, गहि सार ॥* 
*हंस गियानी सो भला, अन्तर राखे एक ।* 
*विष में अमृत काढ ले, दादू बड़ा विवेक ॥* 
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साभार : Gyan-Sarovar(ज्ञान-सरोवर) ~ विवेक-
यूनान के प्रसिध्द दार्शनिक सुकरात एक बार अपने शिष्यों के साथ चर्चा में मग्न थे. उसी समय एक ज्योतिष घूमता-घामता पहुंचा, जो कि चेहरा देख कर व्यक्ति के चरित्र के बारे में बताने का दावा करता था. सुकरात व उनके शिष्यों के समक्ष यही दावा करने लगा. चूंकि सुकरात जितने अच्छे दार्शनिक थे उतने सुदर्शन नहीं थे, बल्कि वे बदसूरत ही थे. पर लोग उन्हें उनके सुन्दर विचारों की वजह से अधिक चाहते थे.
ज्योतिषी सुकरात का चेहरा देखकर कहने लगा, इसके नथुनों की बनावट बता रही है कि इस व्यक्ति में क्रोध की भावना प्रबल है. यह सुन कर सुकरात के शिष्य नाराज होने लगे परन्तु सुकरात ने उन्हें रोक कर ज्योतिष को अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया. इसके माथे और सिर की आकृति के कारण यह निश्चित रूप से लालची होगा. इसकी ठोडी क़ी रचना कहती है कि यह बिलकुल सनकी है, इसके होंठों और दांतों की बनावट के अनुसार यह व्यक्ति सदैव देशद्रोह करने के लिये प्रेरित रहता है.
यह सब सुन कर सुकरात ने ज्योतिषी को इनाम देकर भेज दिया, इस पर सुकरात के शिष्य भौंचक्के रह गये. सुकरात ने उनकी जिज्ञासा शांत करने के लिये कहा कि, सत्य को दबाना ठीक नहीं. ज्योतिषी ने जो कुछ बताया वे सब दुर्गुण मुझमें हैं, मैं उन्हें स्वीकारता हू. पर उस ज्योतिषी से एक भूल अवश्य हुई है, वह यह कि उसने मेरे विवेक की शक्ति पर जरा भी गौर नहीं किया. मैं अपने विवेक से इन सब दुर्गुणों पर अंकुश लगाये रखता हूँ, यह बात ज्योतिषी बताना भूल गया. शिष्य सुकरात की विलक्षणता से और प्रभावित हो गये.

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