॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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दादू काल हमारे कंध चढ़, सदा बजावे तूर ।
कालहरण कर्त्ता पुरुष, क्यों न सँभाले शूर ॥३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक राम - विमुखी जीवों के कंधे पर अर्थात् गर्दन के ऊपर श्वासे श्वास निरन्तर, हर समय, क्षय करने रूप बाजा बजाकर काल - भगवान संसारीजनों को चेतावनी देते हैं कि हे राम विमुख जीवों ! तुम मेरे ग्रास बनोगे । इसलिये हे संतों ! काल से बचने के लिये परमेश्वर की भक्ति में शूरातन - भाव धारण करके कालहरण परमेश्वर का स्मरण करो ॥३॥
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जहॉं जहॉं दादू पग धरै, तहॉं काल का फंध ।
सर ऊपर सांधे खड़ा, अजहुँ न चेते अंध ॥४॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम से विमुखी संसारीजन, जो - जो मनोरथ करते हैं, वह सब नाम रूप पदार्थ, काल - भगवान के फंदे बनाये हुए हैं । वह काल सिर के ऊपर अपना बाण साधकर खड़ा हो रहा है, प्राण लेने के लिये । परन्तु अज्ञानी मनुष्य अन्त समय तक भी मोहरूप निद्रा से चेत नहीं करता है ॥४॥
सोय रह्यो कहा गाफिल ह्वै कर,
तो सिर ऊपर काल दहारें ।
धामस धूमस लाग रह्यो सठ,
आय अचानक तोहि पधारें ॥
ज्यों वन में मृग कूदत फॉंदत,
चित्रक ले नख सौं उर फारै ।
‘सुन्दर’ काल डरे जिनके डर,
ता प्रभु को कहि क्यों न सँभारै ॥
(क्रमशः)
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