*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” २१-२२)*
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*बाल नारायण*
शीश निवाय प्रणाम करी पद,
महंत हु जी दण्डोत कहाये ।
आप कही जु प्रसन्न पुरुषोत्तम,
को हित कारण तोहि पठाये ।
संत कही तव दर्शन के हित,
अम्बुज पाद विलोकि सुहाये ।
पाँच दिना रहि देखि दशा तप,
जाय नारयण महंत सुनाये ॥२१॥
बालनारायण ने श्री दादूजी के चरणों में शीश निवाकर अपने महन्तजी का दण्डवत् प्रणाम निवेदन किया । स्वामीजी ने उनकी कुशलक्षेम पूछी, साधु से साँभर आगमन का कारण जाननाचाहा । साधु ने केवल दर्शन प्रयोजन बताया, और पाँच दिनों तक सत्संग सुनते हुये दादूजी का तप तेज प्रभाव देखकर सलेमाबाद लॏट गया ॥२१॥
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*बाल नारायणदास सलेम बाद के*
बूझत महंत कथा जन साधुहिं,
दास नारायण सो सब भाखी ।
संत लिये अवतार शिरामणि,
है सनकादि नारायण साखी ।
शंकर शेष हि ज्यूं सिध लोमश,
त्यूं सिधरूप दयाल जु आखी ।
है शशि-शीतल, सूरज ज्यूं तप,
संतसुधा मुख में रस चाखी ॥२२॥
वहाँ महन्तजी को साँभर में श्री दादूजी की प्रतिष्ठा का सम्पूर्ण वृतान्त सुनाते हुये कहा - श्री दादूजी संत शिरोमणि हैं, नारायण या सनकदि ॠषि के साक्षात् अवतार प्रतीत होते हैं, शंकर, शेष, और लोमश के समान सिद्ध तपस्वी हैं, वे दयालु शशी के समान शीतल और सूर्य के समान तेजस्वी है । मुखवाणी से ज्ञानोपदेश की सुधा बरसाते हैं ॥२२॥
(क्रमशः)
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