सोमवार, 23 दिसंबर 2013

= काल का अंग २५ =(५/६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
*दादू काल गिरासन का कहै, काल रहित कह सोइ ।*
*काल रहित सुमिरण सदा, बिना गिरासन होइ ॥५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम - विमुख सम्पूर्ण संसार के प्राणी काल के ग्रास हैं । उनकी क्या कथा कहें ? अर्थात् जो काल से मुक्त हो गये हैं अनन्य भक्त, उनकी तो चर्चा ही अलौकिक है । उसका वर्णन करने में तो आनन्द है । काल से तो वही पुरुष मुक्त हैं, जो काल रहित परमेश्वर के नाम स्मरण में ही मग्न रहते हैं ॥५॥
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*दादू मरिये राम बिन, जीजे राम सँभाल ।*
*अमृत पीवै आत्मा, यों साधू बंचै काल ॥६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम - विमुख संसारी प्राणी, पुनः पुनः जन्म - मृत्यु का दुःख भोगते रहते हैं और राम - नाम का स्मरण ही जीने का मुख्य उपाय है । परमेश्वर के अनन्य भक्त इसीलिये भक्ति - अमृत, ज्ञानामृत को पान करके काल के दण्ड से मुक्त होते हैं ॥६॥
(क्रमशः)

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