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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*हैरान का अंग ६/२६.२७*
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*दादू करणहार जे कु़छ किया, सोई हूं कर जाण ।*
*जै तूं चतुर सयाना जानराइ, तो याही परमाण ॥२६॥*
प्रसंग कथा -
वादी पूछा कौन हो, गुरु दादू की आय ।
उत्तर दिया इस साखि से, समझ गया सुखपाय ॥३॥
किसी व्यक्ति ने दादूजी से प्रश्न किया - आप कौन है ? तब दादूजी ने उक्त २६ की साखी से उत्तर दिया था और वह भी दादूजी के भाव को समझ गया और आनन्द के साथ दादूजी को प्रणाम करके चला गया था ।
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*दादू जिन मोहन बाजी रची, सो तुम पु़छो जाइ ।*
*अनेक एक क्यों किये, साहिब कर समझाइ ॥२७॥*
प्रसंग कथा -
इक वादी संसार की, उत्पत्ति पूछी आय ।
तब उत्तर वाको दिया, या साखी समझाय ॥४॥
किसी ने दादूजी से प्रश्न किया - ईश्वर ने अपने एक स्वरूप से अनेक जीव क्यों बना दिये ? उसको उक्त २७ की साखी सुनाकर उत्तर दिया था । उक्त साखी सुनकर वह भी समझ गया था कि ईश्वर की बात का निर्णय करना कठिन है । उसको तो ईश्वर ही यथार्थ रूप से जानते है । धन्य लागे तो अपनी मति के अनुसार ही करते है । सच्चे संत यथार्थ ही करते हैं कि ईश्वर की बात ईश्वर से ही पूछो । उक्त उत्तर से वब अति प्रभावित होकर प्रसन्न हुआ था ।
इति श्री हैरान का अंग ६ समाप्त
(क्रमशः)
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