शनिवार, 14 दिसंबर 2013

दादू करणहार जे कु़छ किया ६/२६.२७

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*हैरान का अंग ६/२६.२७*
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*दादू करणहार जे कु़छ किया, सोई हूं कर जाण ।* 
*जै तूं चतुर सयाना जानराइ, तो याही परमाण ॥२६॥* 
प्रसंग कथा - 
वादी पूछा कौन हो, गुरु दादू की आय । 
उत्तर दिया इस साखि से, समझ गया सुखपाय ॥३॥ 
किसी व्यक्ति ने दादूजी से प्रश्‍न किया - आप कौन है ? तब दादूजी ने उक्त २६ की साखी से उत्तर दिया था और वह भी दादूजी के भाव को समझ गया और आनन्द के साथ दादूजी को प्रणाम करके चला गया था ।
*दादू जिन मोहन बाजी रची, सो तुम पु़छो जाइ ।* 
*अनेक एक क्यों किये, साहिब कर समझाइ ॥२७॥* 
प्रसंग कथा - 
इक वादी संसार की, उत्पत्ति पूछी आय । 
तब उत्तर वाको दिया, या साखी समझाय ॥४॥ 
किसी ने दादूजी से प्रश्‍न किया - ईश्वर ने अपने एक स्वरूप से अनेक जीव क्यों बना दिये ? उसको उक्त २७ की साखी सुनाकर उत्तर दिया था । उक्त साखी सुनकर वह भी समझ गया था कि ईश्वर की बात का निर्णय करना कठिन है । उसको तो ईश्वर ही यथार्थ रूप से जानते है । धन्य लागे तो अपनी मति के अनुसार ही करते है । सच्चे संत यथार्थ ही करते हैं कि ईश्वर की बात ईश्वर से ही पूछो । उक्त उत्तर से वब अति प्रभावित होकर प्रसन्न हुआ था । 
इति श्री हैरान का अंग ६ समाप्त 
(क्रमशः)

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