शनिवार, 14 दिसंबर 2013

ज्ञान भक्ति मन मूल गह ७/७

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*लै का अंग ७/७*
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*ज्ञान भक्ति मन मूल गह, सहज प्रेम ल्यौ लाइ ।*
*दादू सब प्रारंभ तज, जनि काहू सँग जाइ ॥७॥*
दृष्टांत - 
फकीर से औरत कहा, मोहि चूड़ी पहराय ।
रात करे संकल्प बहु, प्रात दिई कुतकाय ॥१॥
एक दरगाह में एक फकीर रहते थे । उस दरगाह की सफाई करने वाली एक स्त्री भी उसमें रहती थी । उसको खाने पहनने आदि की सहायता उक्त फकीर ही देते थे । 
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एक दिन वह स्त्री जल लाने कूप पर गई तब पानी भरने वाली स्त्रीयों ने उसे पू़छा- आजकल तू कहॉं रहती है ? उसने कहा- दरगाह में । स्त्रियों ने पू़छा- खाने पहनने को कौन देता है ? उसने कहा- दरगाह में एक फकीर रहते हैं वे ही देते हैं । यह सुनकर स्त्रीयों ने कहा- अब तू उस फकीर की ही चूड़ी पहन ले । फिर उस स्त्री ने दरगाह के फकीर से कहा- आप मुझे चूड़ी पहना दें । फकीर ने कहा- ठीक है । 
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फिर रात की फकीर ने उसे चूड़ी पहनाने के विषय में विचार किया तो गृहस्थ संम्बधी नाना संकल्प विकल्प होने लगे और उस रात को फकीर अपना साधन भजन किंचित मात्र भी नहीं कर सका तब उसने सोचा- इस स्त्री का दरगाह में रहना तो महा कुसंग है । मुझे तो सब प्रपंच को त्याग कर मालिक का भजना ही करना चाहिये । फिर प्रातः उस स्त्री को दरगाह से निकाल दिया ।
(क्रमशः)

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