सोमवार, 30 दिसंबर 2013

आपा पर सब दूर कर ९/१०

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*चेतावनी का अंग ९/१०*
*आपा पर सब दूर कर, राम-नाम रस लाग ।*
*दादू अवसर जात है, जाग सके तो जाग ॥१०॥*
दृष्टांत - 
वाणिक चला सुत मिलन को, मिले बीच इक ग्राम ।
रात दर्द सूत के चला, रात न लीन्हा नाम ॥४॥
एक वैश्य का पुत्र विदेश कमाने गया था । बहुत समय हो जाने से पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हो गई । अतः वह पुत्र के पास जाने को घर से चल पड़ा । उ़धर पुत्र भी माता पिता से मिलने चल पड़ा । बीच में एक ग्राम की धर्मशाला में दोनों एक कमरे में ठहरे थे किन्तु अंधेरा होने से परस्पर पहचान न सके दोनों थके हुये थे । बिना कु़छ बात करे ही सो गये । 
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आधी रात को पुत्र के पेट में अति तेज दर्द होने लगा । अब उस समय किसके पास जाय और किसको कहै । दर्द से व्यथित दुःख पूर्ण शब्द बोलता था तब पिता सोचता था यह दुष्ट कहां से आ गया है । सोने ही नहीं देता है । किन्तु जब सुर्योदय होने पर परस्पर पहचान में आये तब पिता पश्चाताप करने लगा मुझे रात को पता लग जाता कि यह मेरा पुत्र ही है तो मैं अवश्य उपाय करता ही किन्तु न पहचानने से बेटा तुझे अधिक दुःख उठाना पड़ा । 
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यही उक्त १० की साखी में कहा है कि उक्त पिता के समान अपने पराये का भेद न रखकर सबको ही अपने समान समझकर सब की सेवा करते हुए हरि भजन में लगना चाहिये । देर करके अपना सुअवसर नहीं खोना चाहिये ।
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इति श्री चेतावनी का अंग ९ समाप्तः
(क्रमशः)

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