#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” १-२)*
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*इन्दव - छन्द*
*श्री दादूजी की खोज में आरनन्दराम जी व्याकुल*
है गुजरात जु देश जहाँ लगि,
तहाँ लगि नाहिं सुधी कछु पाई ।
देश ढुंढार हिं संत कही किन,
द्वारिक जात सु जाय सुनाई ।
वर्ष व्यतीत भये पंचजु दश,
बात सुनी गुजरात लिखाई ।
आनन्दराम कही जु स्रुवा ! सुन,
देश ढुंढार तपै तुम - भाई ॥१॥
अहमदाबाद छोड़ने के बाद श्री दादूजी का कोई भी समाचार वृतान्त, उनके परिवारजनों को नहीं मिला था । पूरे गुजरात प्रान्त में दादूजी की खोजबीन की गई, किन्तु कोई सुधी नहीं मिली । एक दिन ढूंढार क्षेत्र के कोई साधु - संत, द्वारिका तीर्थयात्रा के प्रसंग में दादूजी के चाचा श्री आनन्दराम जी को मिले । उन्होंने श्री दादूजी की शोभा सुनाई, और साँभर शहर में विराजने का वृतान्त बताया । पन्द्रह वर्षो बाद दादूजी का वृतान्त जानकर उन्हें अत्यन्त हर्ष हुआ । उन तीर्थयात्री साधुओं के द्वारा गुजरात में भी श्री दादूजी की यशोगाथा विख्यात हो गई । आनन्दरामजी ने घर आकर अपनी पुत्री ‘स्रुवा’ से कहा - अरी स्रुवा हाँ ! सुन तेरा भाई दादू, ढूंढार देश के सांभर शहर में तपस्या कर रहा है ॥१॥
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*आनन्दरामजी साथ में ६० यात्री*
साँभर शहर विख्यात उजागर,
दादुदयालु दिपै दिव्य ज्ञानी ।
यों सुनि बात कहें सब विप्र जु,
साँभर तीरथ देव जु दानी ।
पुष्कर न्हावन चालहु साँभर,
तात सुता उर अन्तर आनी ।
होत विदा पुर लोग सुनी तब,
संग चले जुड़ि के पुर - प्रानी ॥२॥
परिजन एवं परिचित विप्रों ने जब यह वृतान्त सुना तो बोले - साँभर में तो प्रसिद्ध देवयानी तीर्थ है, पास में ही तीर्थराज पुष्कर है । चलो, हम सब इन तीर्थो के दर्शन स्नान भी कर लेंगे, और संत दादूजी से भी मिल लेंगे । इस प्रस्ताव पर नगर के अन्य सज्जन भी साथ चलने को तैयार हो गये । विप्र आनन्द रामजी, अपनी पुत्री को साथ लेकर सभी सज्जनों के संग यात्रा की तैयारी करने लगे ॥२॥
(क्रमशः)
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