गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(६७/६८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
दादू जे तूं प्यासा प्रेम का, तो किसको सेतैं जीव ।
शिर के साटै लीजिये, जे तुझ प्यारा पीव ॥६७॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यदि तूं प्रभु - भक्ति का प्यासा है तो परिछिन्न अभिमान को त्यागकर, ‘किसकौं सेतैं’ कहिये, परमेश्‍वर के सिवाय और किसकी सेवा करता है ? यदि तेरे प्यारे परमेश्‍वर का ही पतिव्रत है, तो यह शिर भी प्रभु के सामने समर्पण करिये ॥६७॥
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दादू महा जोध मोटा बली, सो सदा हमारी भीर ।
सब जग रूठा क्या करै, जहॉं तहॉं रणधीर ॥६८॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! समर्थ परमेश्‍वर ही जब हमारे सहायक हैं, तो संसार की प्रसन्नता और अप्रसन्नता से हमें क्या प्रयोजन है ? वहॉं परमेश्‍वर ही सर्वव्यापी और सर्व शक्तिवान, सर्वज्ञ, ‘जहॉं तहॉं’ कहिये - जाग्रत, स्वप्न और बाहर - भीतर, हमने तो एक उसी की शरण ग्रहण कर ली है ॥६८॥
कहा जगत को रूठणो, तूठे सरे न काज । 
तुलसी वह मत रूठियो, राम गरीब निवाज ॥
(क्रमशः)

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