शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

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卐 सत्यराम सा 卐
Bhakti Samvaad - भक्ति संवाद - Devotional Discussion ~ 
हमारा प्रभु में विश्वास न हो कोई बात नहीं पर हम उनके स्वभाव की, उनके सुन्दर यश की कथा जरूर सुनें.. इससे होता ये है कि जब हम किसी ऐसी परिस्थिति में फंसते हैं जहाँ से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखता और अब ऐसी हालत होती है कि मन में आता है कि किसी राम-कृष्ण के बारे में सुना था, चलो उनसे मदद माँग के देखें.. तब मन से अनायास ही निकल आता है कि 'श्रवन सुजस सुनि आयउ' प्रभु आपका सुन्दर यश सुनकर आ गया हूँ.. और प्रभु अपने पास आने वाले को कभी नहीं त्यागते चाहे उसपर करोड़ों ब्रह्महत्या का पाप भी क्यों न लगा हो.. जब व्यक्ति जान लेता है कि सुना हुआ सच है तो विश्वास की बात क्या प्रेम हो जाता है.. इसलिए कथा जरूर सुनिए.. ~ डॉ. सुमीत 
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चौंप चर्चा 
परम कथा उस एक की, दूजा नांही आन । 
दादू तन मन लाइ कर, सदा सुरति रस पान ॥२३॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे संतों के द्वारा ही परमेश्‍वर की परम कथा, कहिये श्रेष्ठ उपदेश प्राप्त होता है । वही परम कथा है, सो संत ही सुनाते हैं । इसलिये संतों की संगति में तन, मन को स्थिर करके सत् चित् आनन्द में ही वृत्ति लगाइये ॥२३॥ 
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प्रेम कथा हरि की कहै, करै भक्ति ल्यौ लाइ ।
पीवै पिलावै राम रस, सो जन मिलियो आइ ॥२४॥
टीका ~ हे परमेश्‍वर ! हे हरि ! आपकी प्रेम भरी कथा नित्य प्रति कहें, स्वयं राम - रस को पीवें और जिज्ञासुओं को पिलावें । इस प्रकार आपकी भक्ति में लय होकर रत्त रहने वाले संतों को ही हमको आप मिलाओ, आपसे यही मांगते हैं ॥२४॥
कहै कबीर हरि वीनती, सांची संगति देहि । 
जान बूझ साचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ॥ 
झूंठ न कबहूँ आदरै, बनवासी जिमि गेह । 
ताकी संगति रामजी, सुपने हु जनि देह ॥ 
दादू पीवै पिलावै राम रस, प्रेम भक्ति गुण गाइ । 
नित प्रति कथा हरि की करै, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥२५॥ 
टीका ~ हे प्रभु ! आपके सच्चे संत अनन्य भक्ति रूपी अमृत को आप तो पीते ही हैं और जिज्ञासुओं को भी पिलाते हैं । ऐसे आप के प्यारे संत ही हमको आकर मिलें और फिऱ आपकी प्रतिदिन कथा अन्तःकरण के हित के सहित कहने वाले संतों की संगति से ही हम कल्याण को प्राप्त होंगे । ऐसे संतों से ही आप हमें मिलावें ॥२५॥
आन कथा संसार की, हमहिं सुणावै आइ ।
तिसका मुख दादू कहै, दई न दिखाइ ताहि ॥२६॥ 
टीका ~ हे देव ! हे हरि ! आपकी कथा अमृत को त्याग कर ‘आन कथा’ कहिए, देवी-देवताओं की, सकाम कर्मों की, या दुनियावी वार्ता सुनाने वाले पुरुषों को, हमें दर्शन भी नहीं कराना, क्योंकि वे आपकी प्रेमाभक्ति में अन्तर डालने वाले हैं ॥२६॥
दीपक पवन, दूध पर कांजी, 
कंचन सीसै, अगनि कपास ।
परचै केलि कमध कामिनी पट, 
कथा भजन खल बात विनास ॥
सोरठा - 
कबीर तास मिलाइ, जास हियाली तूं बसै ।
नातर बेगि उठाइ, नित का गंजन को सहै ॥
(श्री दादूवाणी ~ साधू का अंग) 

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