शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

= काल का अंग २५ =(८५/८६)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
*दादू धरती करते एक डग, दरिया करते फाल ।* 
*हाकों पर्वत फाड़ते, सो भी खाये काल ॥८५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! काल भगवान् की शक्ति के सामने किसी की भी शक्ति नहीं चलती । जो धरती की एक डग करने वाले भगवान् वामन जैसे, उनके शरीर को भी काल ने खा लिया । और समुद्र की एक फर्लांग करने वाले हनुमान जी जैसे बलिष्ठ पुरुषों के स्थूल शरीरों को भी काल ने चूर्ण कर दिया । और पहाड़ में जाकर ‘हाक’ देने से, जिनकी हाक से पहाड़ में दरार हो जाती, ऐसे - ऐसे बली, भीम योद्धाओं को भी काल ने भक्षण कर लिया ॥८५॥ 
इंद्र लोक भय मानते, डरता सेस पाताल । 
जैमल ऐसे महाबली, केते खाये काल ॥ 
रामस्य प्रब्रजनं बलेर्नियमनं पांडोः सुतानां वनं, 
वृष्णीनां निधनं नलस्य नृपतेः राज्यात्परिभ्रंशनम् । 
नाटयाचार्य धनंजयस्य पतनं संचित्य लंकेश्वरे, 
सर्वं कालवशात् जनोऽत्र सहते कः कं परित्रायते ॥ 
हनुमान भीमादि अति जोधा थे जग मांहि । 
असम हाक तैं फाड़ते, अंतक तैं बलि नाहिं ॥ 
बांके गढ़ को तोड़ते, तर्कस सौ सौ तीर । 
तिन सिर बैठे कागले, चोंच सँवारत बीर ॥ 
*दादू सब जग कंपै काल तैं, ब्रह्मा विष्णु महेश ।* 
*सुर नर मुनिजन लोक सब, स्वर्ग रसातल शेष ॥८६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! काल - भगवान् से तीन लोक कांपते हैं और कहॉं तक कहें ? ब्रह्माजी, विष्णु जी, शंकर महाराज, सुर देवता, नर मनुष्य, मुनि लोग, सम्पूर्ण लोकों के निवासी, स्वर्ग और ‘रसातल’ कहिए पाताल में शेष जी महाराज, ये सब ही काल भगवान् से कंपायमान् होकर, कारण - ब्रह्म का ध्यान करके, काल की त्रास से मुक्त हुए हैं ॥८६॥ 
देव सकल बस काल के, ब्रह्मादिक हरि रूद्र । 
‘जगन्नाथ’ जगदीस बिन, बचे न दानव क्षुद्र ॥
(क्रमशः)

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