॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*पूत पिता थैं बीछुट्या, भूलि पड़या किस ठौर ।*
*मरै नहिं उर फाट कर, दादू बड़ा कठोर ॥५५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह जीव ब्रह्म का अंश, अपने पिता ब्रह्म से विमुख होकर देखो, संसार की विषय - वासनाओं में तथा पाप - पुण्य के बन्धनों में बँधकर भ्रमता है । किन्तु ‘उर फाट कर’ कहिये, अज्ञान रूप भ्रम का नाश करके, जीवित मृतक होकर अर्थात् गुणातीत तटस्थ रहकर ब्रह्म से अभेद नहीं होता है, क्योंकि वृत्ति देह अध्यास में लगी है ॥५५॥
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*काल चेतावनी*
*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै, आयु घटै तन छीजै ।*
*अंतकाल दिन आइ पहुंता, दादू ढील न कीजै ॥५६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो उम्र के दिन बीतते हैं, वह फिर दुबारा नहीं आने के । ऐसे ही मनुष्य देह के श्वांस भी नहीं आवेंगे । अन्त समय नजदीक आता है और गया समय वापिस नहीं आता । इसलिये राम का स्मरण करने में अब देर नहीं करना ॥५६॥
(क्रमशः)
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