शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

= अ. त./३८-३९ =


*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ 
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~ 
*(“अष्टम - तरंग” ३८-३९)* 
*क्षत्रिय वंश नृसिंहपुरा के तेजानन्द जी*
क्षत्रिय वंश नृसिंहपुरा जन, 
नारि सुता युग तातहिं कहिये ।
पाँचहु भक्त भये गुण गावत, 
धीरज ध्यान दृढे करि लहिये ।
जाप करें नित दूर भये दुख, 
संतन में नित चित्त हु रहिये ।
आयसु पाय चले दिशि पश्चिम, 
जोधपुरे गिरि वास हु गहिये ॥३८॥ 
नृसिंहपुरावासी, क्षत्रियवंशी तेजानन्द की पत्नी, पुत्री और दोनों पुत्र भी संत दर्शनों से पवित्र अन्त:करण वाले हो गये । संत सेवा और हरिभक्ति में रूचि लेने लगे । वे सब हरिगुण गाते, नाम जपते, धैर्य पूर्वक ध्यान को दृढ करने का प्रयत्न करते । उनका चित्त सदा संत सेवा में लगा रहता । कुछ दिनों बाद स्वामीजी ने आज्ञा दी कि - गुजरात से यहाँ आते समय मार्ग में जिस पहाड़ी स्थान को देखकर भजन - साधना करने की इच्छा हुई थी, अब वहीं जाकर भजन करो । तब वे राजस्थान के पश्चिम में जोधपुर नगर के पास एक पहाड़ी पर आकर रहने लगे और भजन में लीन हो गये ॥३८॥ 
*तेजानन्द जी की डूंगरी गड पहाड़ी जोधपुर*
वर्ष भये चलि अम्बपुरी मधि, 
दादु दयालु हिं जोरत पानी ।
तात पिता तब शीश निवावत, 
मासहिं संग रहे सुखदानी ।
दास गरीबहिं भेंट कियो सुत, 
सहजानन्द हु नाम बखानी ।
तेजानन्द जु जोधपुरे चलि, 
भाखर पे जपि हैं गुरुबानी ॥३९॥ 
एक वर्ष के पश्चात् पुन: अम्बापुरी आकर गुरुजी के दर्शन किये और हाथ जोड़कर निवेदन किया कि - इस मेरे बालक को भी शिष्य बना लीजिये । तब गुरु - आज्ञा से गरीबदास जी ने उसे शिष्य बनाया । उसका नाम सहजानन्द रखा गया । एक मास तक सत्संग करने के बाद तेजानन्द जी पुन: जोधपुर के समीपस्थ गऊ पहाड़ी पर, अपने साधना धाम पर चले गये, तेजानन्द जी की डूंगरी जोधपुर मे प्रसिद्ध है ॥३९॥
(क्रमशः)

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