॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*दादू प्राण पयाना कर गया, माटी धरी मसाण ।*
*जालणहारे देखकर, चेतैं नहीं अजाण ॥६३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! झूठे व्यवहार करते - करते शरीर से प्राण निकल गये । शरीर रूप मिट्टी शमशान में रखी है । जलाने वाले देख रहे हैं । परन्तु फिर भी वे गंवार, विषयों के यार, यह नहीं विचार करते कि एक रोज हमारा शरीर भी शमशान में लाकर जलाया जायेगा ॥६३॥
म्रियमाणं मृतं बन्धुं शोचन्ति परिवेदिनः ।
आत्मानं नानुशोचन्ति कालेन कवलीकृतम् ॥
(मरे हुए भाई - बन्धुओं को देखकर शोक करता है, किन्तु मैं भी एक दिन मरूंगा, यह नहीं सोचता ।)
कबीर जिन हम जाये ते मुये, हम भी चालणहार ।
जे हमको आगे मिले, तिन भी बंध्या भार ॥
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*दादू केई जाले केई जालिये, केई जालण जांहि ।*
*केई जालन की करैं, दादू जीवन नांहि ॥६४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कितने ही तो जला दिये और कितने ही को जलाना है । और कितने ही को जलाने जा रहे हैं । कितने ही को जलाने की तैयारी कर रहे हैं । अतः जीने की आशा नहीं है ॥६४॥
कबीर रोवन हारे भी मुये, मुये जलावनहार ।
हा हा करते ही मुये, का सन करौं पुकार ॥
(क्रमशः)
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