卐 सत्यराम सा 卐
दादू मन चित आतम देखिये, लागा है किस ठौर?
जहँ लागा तैसा जाणिये, का देखै दादू और ॥
दादू साधु परखिये, अन्तर आतम देख ।
मन मांहि माया रहै, कै आपै आप अलेख ॥
दादू मन की देख कर, पीछे धरिये नांव ।
अन्तरगति की जे लखैं, तिनकी मैं बलि जांव ॥
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