सोमवार, 27 जनवरी 2014

= काल का अंग २५ =(७५/७६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*काल का अंग २५*
.
*बहुत पसारा कर गया, कुछ हाथ न आया ।*
*दादू हरि की भक्ति बिन, प्राणी पछताया ॥७५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! परमात्मा से विमुख जीव ने वासनामय बहुत पसारा फैला लिया, परन्तु परमेश्वर के नाम - स्मरण के बिना कुछ भी सार हाथ में नहीं आया । अन्त समय में परमेश्वर की भक्ति के बिना, यह प्राणी पश्चात्ताप ही करता है ॥७५॥
मोटे मीर कहावते, करते बहुत डफोल । 
मरद गरद मै मिलि गये, सु हरि बोलो हरि बोल ॥
.
*माणस जल का बुदबुदा, पानी का पोटा ।*
*दादू काया कोट में, मैं वासी मोटा ॥७६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यह मनुष्य का शरीर, जल के बुलबुले की भॉंति, वीर्य बिन्दु से पानी की पोट बना हुआ है । इस काया रूप कोट में बैठकर अपने को सबमें प्रधान मानता है, परन्तु यह तो क्षण भंगुर है । इसका क्या अभिमान करता है ? यह तो काल का ग्रास होने वाला है ॥७६॥ (मैं वासी ~ मेवासी पाठान्तर)
अनित्यं यौवनं रूपं जीवनं द्रव्यसंचयः । 
आरोग्यं प्रियसंवासो गृद्धयेदेषु न पंडितः ॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें