*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“नवम - तरंग” १७-१८)*
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यों सिकदार भयो निज सेवक,
साँभर भक्ति करी निज रानी ।
बात सुनी अजमेरि सबै पुनि,
वर्ष गयो इत आवत काजी ।
हाथ कुरान लियो इत दौरत,
साँभर के घर लोगन साजी ।
भिस्त नहीं, कलमा बिन बाँचत,
राम कहें नर काफिर पाजी ॥१७॥
इस प्रकार सिकदार दादूजी का भक्त हो गया और सांभर में भक्ति की । यह बात जब अजमेर के बड़े काजी ने सुनी तो घटना के एक वर्ष बाद हाथ में कुरान पकड़े साँभर आया, और अपने समाज के लोगों को एकत्र करके समझाने लगा - “बिना कुरान पढे तुम्हें भिस्त(स्वर्ग) नहीं मिलेगा, अत: रोज कलमा पढो । जो नर राम - राम कहेगा, वह काफिर और पाजी है” ॥१७॥
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*काजी को उपदेश*
बोलत काफ नहीं दिल साबत,
मारत जीव हते कुस राना ।
काफिर तांहि कुरान कहे शठ,
खान रू पान अधोगति जाना ।
मोहमद शाह पैगम्बर भाखत,
राह चलो नहिं, जीव दुखाना ।
खाय मुवा नहिं, जीव न मारत,
या निज दीन सदा तुरकाना ॥१८॥
वह अपने संगी साथियों के साथ श्री दादूजी के पास आया, और उन्हें अपशब्द कहने लगा । तब स्वामीजी ने उसे उपदेश दिया कि - तुम स्वयं तो काफ(गलत बात) बोलते हो, और दूसरों को काफिर कहते हो । तुम्हारा तो अपना दिल ही साफ नहीं है । तुम तो जीवों को मारते हो, उनकी हत्या से खुशी मनाते हो । तुम्हारे कुरान में तो उन्हें ही काफिर कहा गया है कि - जिनका दिल साफ नहीं है, जो काफ बोलते हैं, जीवों की हत्या करते है । अरे शठ ! जीवों को मारकर उनका मांस खाने वाले तो निश्चित ही अधोगति में, नरक में जावेंगे । मोहम्मद शाह पैगम्बर ने जो उपदेश शिक्षा जाहिर की थी - उस पर तो तुम चलते नहीं । उन्होंने तो सच्चे तुर्क मुसलमान का दीन ईमान यही बताया था कि - जीवों को मत मारो, मृतक - मांस तथा मांस मत खाओ, सब पर दया करो । किन्तु तुम तो उसके विपरीत चलते हो ॥१८॥
(क्रमशः)
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