॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*दादू करह पलाण कर, को चेतन चढ़ जाई ।*
*मिल साहिब दिन देखतां, सांझ पड़े जनि आइ ॥२९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! उत्तम साधक मन रूपी ऊँट पर, भक्ति - वैराग्य का साज कहिये, जीन कस करके, गुरु उपदेश का गुरुमुखी, सच्चा शिष्य चढ कर, ब्रह्माकार वृत्ति द्वारा, दिन - दिन कहिये, जवानी अवस्था में ही परमात्मा के स्वरूप में अभेद हो जाता है । अर्थात् वृद्धावस्था रूप सायंकाल नहीं आने देता है । वह पुरुष चौरासी में नहीं जाते, किन्तु जीवन - मुक्त होते हैं ॥२९॥
बणिक पुत्र ठग बस पर्यो, दिया चार दृष्टान्त ।
सूवो बाज कुत्तो मिरग, करह चढ गयो कंत ॥
दृष्टान्त ~ एक बनिये का पुत्र विदेश में कमाने गया । वहॉं कमाई करके उसने चार लाल खरीद लिये और जांघ चीर कर अन्दर रख लिये । मल्हम पट्टी करके जांघ ठीक कर ली । अब अपने गॉंव रवाना हुआ, तो जंगल में एक ठगों का घर था ।
उस ठग की लड़की, जो उधर से मुसाफिर निकलता, वह तान्त्रिक विद्या से उसके धन का पता लगा लेती । पिता और भाई को बोल देती । इसी प्रकार इस बनिये के लड़के के लिये भी बोली कि इसके पास चार लाल हैं । उसको वह घर ले आये । रात्रि को उसकी पहली लड़की उसके पास गई । बोली ~ तेरे पास चार लाल हैं । उनको दे दे, नहीं तो जान से मारेंगे ।
वह बोला ~ सुन एक दृष्टान्त । एक राजा के तोता था, उसका नाम था हीरामणि । एक समय तोतों की सभा लगी । वह भी गया । एक एक अमृत फल बटा । यह लेकर आ गया, और राजा को दिया, खाने के लिये । मंत्री बोला ~ अन्नदाता ! पक्षी का लाया हुआ फल है, पता क्या, कैसा है ? परीक्षा करके खाना ।
मंत्री ने जहरीला वैसा ही फल लाकर रख दिया और वह फल ले गया । जब राजा उसमें से टुकड़ा कुत्ते को डलवाया, तो कुत्ता मर गया । राजा ने क्रोध में आकर, तोते को खत्म कर दिया । वह अमृत फल मंत्री ने वैश्या को दिया । वेश्या ने राजा को लाकर दिया । राजा तोते को मार कर पछताया और फल को पहचान लिया कि यह अमृत फल है । ऐसे तूं मुझे मारकर पछतावेगी ।
इतने में दूसरी लड़की आई । पहले वाली चली गई । वह बोली लाल दे दे, मुझसे नहीं बचेगा । लड़का बोला ~ सुन, एक राजकुमार जंगल में शिकार करने गया । उसके पास एक बाज था । प्यास लगी तो एक वट वृक्ष के नीचे राज कुमार बैठा । राजकुमार ने एक ठीकरा उठाकर रख दिया । उसमें पानी की बूंदें पड़ने लगी । जब पीने को तैयार हुआ, तो बाज ने झपट्टा मार गिरा दिया । उसने गुस्से में आकर बाज को मार दिया ।
राजकुमार ने सोचा, फिर ऊपर से पानी किस प्रकार आता ? ऊपर चढ़कर देखा तो एक अजगर सर्प, उसके मुंह से जहर की लार टपक रही थी । तब फिर बाज को याद करके राजकुमार पछताने लगा । तूं मुझे मार कर, ऐसे पछताएगी । दोपहर रात चली गई ।
तीसरे पहर तीसरी लड़की आई । वह भी वैसे ही बोली । लड़का बोला ~ एक बनजारा खर्चा कम पड़ जाने से, अपने कुत्ते को एक लाख रुपये में एक साहूकार के गहने रख दिया । कुत्ता चौकीदारी पूरी करता था । एक रोज साहूकार के यहॉं चोर घुस गये और सब धन निकाल कर तालाब में जाकर गाड़ दिया । सवेरे कुत्ता उनके कपड़े खींच - खींच कर तालाब की तरफ दौड़े । कुत्ता तालाब में घुस कर गर्दन से तालाब में उनको बुलाने लगा । साहूकार धन निकाल लाया ।
एक कागज में लिख दिया कि आपके एक लाख रुपये हमने वसूल पाये । आपका कुत्ता आ रहा है । इसको आप संभाल लेना । यह लिखकर, वह चिट्ठी कुत्ते के गले में बांध दी और कुत्ते को छोड़ दिया । कुत्ता जब बनजारे के सामने गया, तब बनजारे ने विचार किया कि मेरी बात इसने खो दी । बिना रुपये दिये, यह चला आया । बंदूक उठाकर दूर से गोली मारी और कुत्ता मर गया । कुत्ते के गले से चिट्ठी पढ़ी तो, कुत्ते को याद करके रोने लगा । ऐसे ही तूं मुझे मार पछतावेगी ।
चौथी लड़की आई और वह भी उसी प्रकार बोली । लड़का बोला ~ एक मृग और कव्वे की मित्रता थी । कव्वा घरों में से पदार्थ ला - लाकर मृग को खिलाया करता । एक गीदड़ बोला ~ मुझे भी मित्र बना लो । एक दिन गीदड़ उनको ककड़ी खरबूजों की बाड़ी में रात को ले गया । खूब पेट भरके तीनों ने खाये । सवेरे खेत के मालिक ने देखा कि मृग आने लग गये । तो वहॉं उसने फंदे डाल दिये । दूसरी रात जब वह फिर आये तो मृग के पांव फंदों में फंस गये । कव्वा गीदड़ को बोला ~ मित्र के पांव के फंदे तेरे दांतों से काट दे । गीदड़ बोला ~ कि में गंगा जी गया था । चमड़ा मुंह में लेना, वहॉं छोड़ आया । कव्वे ने गीदड़ की आँखें फोड़ दी और बोला ~ कि तूं बदमाश है ।
गीदड़ खेत की डोली के नीचे जाकर बैठ गया । सवेरे ही खेत वाला आया । कव्वा मृग के ऊपर बैठा हुआ कांव कांव करने लगा । मृग को बोल दिया था कि जब मैं उडूं तो तूं भी, उठ करके भाग जाना । खेत वाला कुल्हाड़ी लेकर आया और देखा मृग मर गया । उसके पावों के फन्दे काटे । कव्वा उड़ा, साथ ही मृग उठकर दौड़ गया । उसके पास कुत्ता था, कुत्ता छोड़ा । मृग हाथ नहीं आया और गीदड़ आ गया । उसको कुत्तों ने खा लिया ।
वह कहता है जैसे वह गीदड़ मित्र - द्रोह करके पछताया, ऐसे ही तूं भी मार कर पछतावेगी । वह लड़की बोली कि मैं तेरे साथ बहुत खुश हूँ । तूं मुझे ले चल । दो ऊंट हैं - करहा और सरहा ।
करहा रात में चलने वाला और सरहा दिन को चलने वाला । करहा को खोल कर ले आया और उस पर जीन कस ली । लड़की घर से माल लेकर, उसके साथ ऊँट पर बैठ कर चल पड़ी । जब ऊँट की चाल लड़की ने देखी तो बोली तूं तो रात वाला ले आया । यह तो दिन निकलते ही बैठ जायेगा । वे सरहा पर बैठकर, अपने को आ पकड़ेंगे और मारेंगे । दिन निकलते ही वह बैठ गया । उधर ठगों ने देखा कि धन, लड़की और लड़का तीनों ही गायब हैं । तब ऊँट को देखा तो कहा - अभी चल कर पकड़ लेते हैं । दिन में चलने वाला, सरहा हमारे पास है ।
दोनों बाप और बेटा सरहा पर चढ़े और वहॉं से ऊँट हवा से बातें करने लगा । लड़की बोली ~ तूं पेड़ पर चढ़ जा । नीचे जब मैं सरहा ऊँट करूं, तो उस पर कूद कर बैठ जाना । उसका बाप और भाई आ पहुंचे । रोती हुई बोली ~ मुझे डरा धमका कर, पकड़ लायाऔर अब पेड़ पर चढ़ा बैठा है । तब वह दोनों उसको पकड़ने के लिये पेड़ पर चढ़ गये, लड़की, सरहा ऊँट पर बैठकर पेड़ के नीचे ले आई ।
लड़का ऊपर से सरहा के ऊपर कूद कर बैठा । दोनों ऊँट पर ज्यों ही बैठे, त्यों ही ऊँट हवा से बातें करने लगा । ठग देखते ही रह गये, और साहूकार का लड़का घर जा पहुँचा । इसी प्रकार मन रूपी करहा पर सवार होकर ब्रह्म अनुसारिणी वृत्ति सहित ब्रह्म में उत्तम, पुरुष अभेद हो गये ।
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*पंथ दुहेला दूर घर, संग न साथी कोइ ।*
*उस मारग हम जाहिंगे, दादू क्यों सुख सोइ ॥३०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर का निष्काम मार्ग, भक्ति - वैराग्य - ज्ञान रूप कठिन है और स्वस्वरूप का बोध बहिरंग साधनों से प्राप्त नहीं होता । इसलिये अज्ञान अवस्था से, अर्थात् मोह रूप निद्रा से चेत करके अन्तरंग धन, विवेक - वैराग्य आदिक की साधना में लग जाओ ॥३०॥
(क्रमशः)
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