🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*माया का अंग १२/१३३*
.
*माया मारे लात सौं, हरि को घाले हाथ ।*
*संग तजे सब झूठ को, गहे साच का साथ ॥१३३॥*
दृष्टांत -
माया फिरत लगाम ले, तपस्वी गर्वा पेख ।
बन सेवकनी छल लिया, एड दिई कह देख ॥२५॥
माया एक स्त्री के रूप में लगामें लिये घूमती हुई वन में एक तपस्वी के आश्रम के पास आई । तपस्वी ने पू़छा - आपके पास लगामें है किन्तु घोड़े तो नहीं हैं ? वह बोली - मैं माया हूँ और ये लगामें बड़े बड़े तपस्वी रूप घोड़ों के लिये हैं । तपस्वी - हमारे लिये भी है क्या ? माया - तुम्हारे जैसे टटुओं को तो मैं बिना लगाम ही चलाती हूँ । तपस्वी - जाओ जाओ यहां से, मेरे को तुम बिना लगाम क्या लगाम से भी नहीं चला सकती । माया - तुमको तो बिना लगाम ही चलाऊंगी । यह कह
कर आगे चली गई ।
.
चातुर्मास के दिन थे झरमर - झरमर वर्षा बरस रही थी लगभग एक घंटा दिन रहा था । उसी समय श्वेत वस्त्र धारण किये हुये एक बाई तपस्वी के आश्रम के पास आकर तपस्वी को प्रणाम करके बोली - महाराज ! अनाथ हूँ अकेली हूँ रात्रि को मुझे रहने दीजिये । मैं आपकी शरण आई हूँ । तपस्वी ने कहा - बाईजी ! यहां रात को नहीं रह सकती । बाई - जाऊं कैसे एक तो वर्षा बरस रही है नदी में पानी चढ़ रहा है । तपस्वी - चली जाओ अभी दिन है । बाई - मैं अबला हूँ, पुरुषों के समान मुझमें साहस कहां है ? तपस्वी - चलो मैं आपको नदी से पार कर आता हूँ । फिर ग्राम पास ही है चली जाना । बाई - यदि आप नदी से पार करे आयें तब तो मैं जैसे तैसे ग्राम मैं चली जाऊंगी ।
.
तपस्वी बाई के साथ नदी पर आये और बोले - मैं आगे आगे चलता हूँ आप मेरे पीछे पीछे चली आओ । गोडे प्रमाण जल आते ही बाई बोली - में तो बह रही हूं । तब तपस्वी उसका हाथ पकड़ कर आगे आगे चले । कमर प्रमाण जल आते ही चिल्लाने लगी मैं डूब डूबी । तप तपस्वी ने उसे अपने कंधे पर बैठाया और चला तो बाई ने आगे पीछे दोनों और एडियां मारी । तपस्वी - यह क्या करती हो ? माया - देख, बिना लगाम ही चलाती हूँ । इतना कहते ही तपस्वी ने उसे कंधे से पटका तो अब न बाई है और न नदी में कटि प्रमाण जल ही है वह खेल माया ने रचा था सोई उक्त १३३ की साखी में कहा है कि - माया लातों से मारती है । उससे सचेत ही रहना चाहिये ।
.
१३३ की साखी के "संग तजे सब झूठ का" इस तृतीय पाद पर दृष्टांत -
विद्यारण्य मुनि ने किये, माया लग अनुष्ठान ।
भये संन्यासी आ गई, शिला धरा ममथान ॥२६॥
विद्यारण्य मुनि मायणाचार्य के पुत्र थे इनका पूर्व नाम माधव था ये अच्छे विद्वान थे । इन्होंने महालक्ष्मी के तीन अनुष्ठान किये थे । तृतीय अनुष्ठान की समाप्ति पर भी जब महालक्ष्मी नहीं प्रकट हुई तब माधव संन्यास लेकर विद्यारण्य मुनि बन गये फिर महालक्ष्मी इनके सामने प्रकट हुई ।
.
इन्होंने पू़छा - आप कौन हैं ? उसने कहा - आपने जिसके लिये तीन अनुष्ठान किये थे वही मैं हूँ । विद्यारण्य ने कहा - आप पहले क्यों नहीं प्रकट हुई ? महालक्ष्मी ने कहा - पूर्वजन्मों की तीन ब्रह्म हत्यायें आपके लगी थीं । वे अनुष्ठान के फल की प्राप्ति में विघ्न थीं । आपके संन्यास लेने पर वे नष्ट हो गई हैं । इसी से मैं प्रहले प्रकट नहीं हो सकी थी । विद्यारण्य बोले - अब हमने संन्यास ले लिया है । अब लक्ष्मी से हमें क्या काम है ? महालक्ष्मी ने कहा - जो भी आपकी इच्छा हो वही मांगिये । विद्यारण्य ने कहा - जिस शिला पर में बैठा हूँ, यह शिला मुझे बहुत प्रिय है, जहां मैं जाऊं वहां यह शिला पहुँचा दिया करो ।
.
महालक्ष्मी तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गई । फिर वे जहां जाते थे वहां वह शिला पहुँचा दी जाती थी । आगे आने वाला चातुर्मास विद्यारण्य के एक वैष्णवाचार्य के यहाँ किया । चातुर्मास की समाप्ति से पूर्व ही महालक्ष्मी वैष्णावाचार्य के सामने प्रकट होकर बोली - ये यतिराज चातुर्मास की समाप्ति पर आपको कहैंगे कि जो इच्छा हो वही मांगो । तब आप यह शिला इनसे मांग लेना और इसकी भगवान् की मूर्तियाँ बनवाना । जहां जहां वे मूर्तियें रहेंगी वहां वहां अटूट लक्ष्मी रहेगी ।
.
वैष्णवाचार्य ने वैसा ही किया उसकी सात मूर्तियें बनवाई गई । अब वे जहां जहां हैं वहां वहां अटूट लक्ष्मी है । उक्त १३३ की साखी के संग तजे सब झूठ का में कहा है, विद्यारण्य मुनि ने मिथ्या लक्ष्मी का त्याग कर दिया था । ऐसे ही साधक को मिथ्या माया का त्याग ही करना चाहिये । उसके संग्रह से साधन में विघ्न ही आते हैं ।
Mera kalyan kare.aapka co.no.dijiye.
जवाब देंहटाएं