शनिवार, 18 जनवरी 2014

= १४३ =


卐 सत्यराम सा 卐
विनती
दादू कहै - जे तूं राखै सांइयां, तो मार सकै ना कोइ ।
बाल न बांका कर सकै, जे जग बैरी होइ ॥८०॥ 
टीका - हे परमेश्‍वर ! आप जिनकी रक्षा करो, तो फिर उनको कोई नहीं मार सकता । चाहे सम्पूर्ण जगत उनका शत्रु हो जावे, तो उनका एक रोम भी टेढ़ा नहीं कर सकते ॥८०॥ 
लाक्षा मन्दिर में रखे, पाँचों पांडू आप । 
दुर्योधन करी दुष्टता, भगवत मेरी ताप ॥ 
दादू राखणहारा राखै, तिसे कौन मारै ।
उसे कौन डुबोवे, जिसे सांई तारै ॥ 
बाकी कौन बिगारै, जाकी आप सुधारै ।
कहै दादू सो कबहूँ न हारै, जे जन सांई संभारै ॥८१॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर सर्वशक्तिवान, सबकी रक्षा करने वाला, जिसको अपनी शरण में रखे, उसको इस संसार में मारने वाला कौन है ? और वह परमेश्‍वर जिसको संसार समुद्र से तारै, उसे काम आदि दोष क्या डूबो सकते हैं ? ब्रह्मऋषि कहते हैं कि परमेश्‍वर के अनन्य भक्त, सदैव परमेश्‍वर का स्मरण करते हैं । उनकी संसार में कभी हार नहीं होती है । वे ही मनुष्य देह की बाजी जीत कर जाते हैं ॥८१॥ 
निर्भय बैठा राम जप, कबहूँ काल न खाइ ।
जब दादू कुंजर चढै, तब सुनहाँ झख जाइ ॥८२॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर के अनन्य भक्त, काल - कर्म से निर्भय होकर अन्तःकरण में राम का स्मरण करते हैं । उन पुरुषों को कभी काल दण्ड देने को समर्थ नहीं है । जैसे कोई हाथी पर बैठा है, तब कुत्ते उसको देखकर भौंकते हैं, पर उसका बिगाड़ कुछ नहीं कर पाते । अर्थात् नामरूपी हाथी पर जो भक्त बैठे हैं, उनका कुत्तेरूप सांसारिक विषयी पामर, क्या बिगाड़ कर सकते हैं ? जैसे मीरां आदि अनेक संत भक्त हो गये ॥८२॥ 
कायर कूकर कोटि मिलि, भौंके अरु भागैं ।
दादू गरवा गुरुमुखी, हस्ति नहीं लागैं ॥८३॥ 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! भगवान से विमुखी निन्दक संसारीजन, भक्तों को निन्दा आदि के द्वारा नाना शारीरिक कष्ट देते हैं । किन्तु हाथी की भांति गरवा = गंभीर और गुरुमुखी गुरु उपदेशों में संलग्न हुए संतजन, सर्व व्यवहारों से निष्काम होकर, स्वस्वरूप में ही मग्न रहते हैं । उनका संसारीजन कुछ नहीं बिगाड़ कर पाते ॥८३॥ 
(श्री दादूवाणी ~ शूरातन का अंग)

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