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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अंग १०/७९*
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*दादू ध्यान धरे का होत है, जे मन का मैल न जाइ ।*
*बक मीनी का ध्यान धर, पशू विचारे खाइ ॥७९॥*
दृष्टांत -
राम लखन पंपा गये, बक मच्छी संवाद ।
मीनी गल गिरगा फँसा, मूसा खाये स्वाद ॥११॥
जब राम लक्ष्मण पम्पा सरोवर पर पहुँचे तो सरोवर की तीर पर रामजी ने एक
बगले को देखा जो शनैः चल रहा था । उसकी गति को देखकर रामजी ने
लक्ष्मणजी को कहा -
शनैर्मचति पादौवै जीवानामनुकंपया ।
पश्य लक्ष्मण पंपायां बकः परम धार्मिकः ॥१२॥
रामजी का उक्त वचन सुनकर एक चट्टान की ओट में बैठी मच्छी ने कहा -
नहीं विदेशी जानते, जानें जो रह पास ।
इस बगले ने ही किया, मेरे कुल का नाश ॥
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द्वितीय दृष्टांत -
मीनी गल गिरगा फँसा, मूसा खाये स्वाद । ११ वें दोहे का उत्तरार्ध ।
एक चूहों के यूथ में से एक बिल्ली चूहों को पकड़ - पकड़ कर खाती थी । एक दिन एक बलवान चूहे की पूंछ उसने पकड़ ली किन्तु उसने जोर लगाया इससे पूंछ टूट कर बिल्ली के हाथ में रह गई और वह बिल में जा घुसा । फिर उसने सबसे पू़छा - हम कितने थे ? उत्तर मिला एक हजार थे । फिर गणना की तो नौ सौ ही मिले । फिर सबने बांडे को अपना प्रधान बना लिया । बांड़ा बिल्ली को देखता रहता था । जब नहीं होती तो सबको कहता खा पी कर शीघ्र बिलों में आ जाओ । बिल्ली भी जान गई कि बांडे ने इन सबको सचेत कर दिया है ।
एक दिन बिल्ली ने एक संकडे मुँह की घी की हाँडी में बल से मुख चला तो दिया किन्तु निकला नहीं तब हाँडी को पत्थर पर मार कर फोड़ डाला और मुख गले में रह गया । तब वह चूहों से कहने लगी में केदारनाथ गई थी और केदार कंकन पहन आई हूं । अब चूहों को नहीं मारती, देखो मेरे गले में कंकन है । अब तुम आराम से बाहर घूमो । जब चूहे उसकी बात पर विश्वास करके निकलने लगे तो पहले उसने बांडे को ही पकड़ कर खाया । कारण ? उसी ने चूहों को बहकाया था । जब बांडा नहीं दिखाई दिया तब सब सचेत हो गये और बोले -
कंठे केदार कंकणं दूरे ध्यान तपस्वनी ।
सहस्त्र मध्ये न शतं बांडा मुख्यो न दर्श्यते ॥१३॥
अर्थात् कंठ में केदार कंकँण धारण करने वाली । और ध्यान करने वाली इस तपस्विनी से हम सबको दूर ही रहना चाहिये । क्योंकि हमारी सहस्त्र संख्या में सौ कम हो गये हैं और हमारा प्रधान बांडा भी अब नहीं दिखाई देता है । अतः उसको भी इस तपस्विनी ने खाया है । उक्त प्रकार के ध्यान से भगवान् नहीं मिलते पाप ही मिलता है । ऐसा नहीं करना चाहिये ।
(क्रमशः)
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