॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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दादू जोरा बैरी काल है, सो जीव न जानै ।
सब जग सूता नींदड़ी, इस तानै बानै ॥३३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! काल - भगवान बड़े बलवान् है । राम - विमुखी जीव उसको भूल रहा है । सम्पूर्ण जगत् मोह निद्रा में सो रहा है । परमेश्वर के स्मरण से अलग रहकर काल से अपना सम्बन्ध बना लिया है ॥३३॥
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दादू करणी काल की, सब जग परलै होइ ।
राम विमुख सब मर गये, चेत न देखै कोइ ॥३४॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसार के विषयों में आसक्त अज्ञानी जीव, राम से विमुख होकर निषिद्ध कर्मों द्वारा नाश होते जा रहे हैं । इसी प्रकार राम से विमुख होकर, संसारीजन मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं । कोई भी चेत करके काल को नहीं देखता है ॥३४॥
कबीर सब सुख राम है, और दुखां की रास ।
सुरनर मुनियर असुर सब, परे काल की पास ॥
(क्रमशः)
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