मंगलवार, 7 जनवरी 2014

= काल का अंग २५ =(३५/३६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
साहिब को सुमिरै नहीं, बहुत उठावै भार ।
दादू करणी काल की, सब परलै संसार ॥३५॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी जीव, परमेश्वर का निष्काम स्मरण भूलकर, सकाम कर्म और अहंकार रूपी बोझा सिर पर लेकर, काल को प्राप्त करने के ही काम करते हैं । इसीलिये संसार के प्राणी प्रलय( नष्ट ) होते जाते हैं ॥३५॥
अश्व गयंद बोहिथ चढ़े, मूरख ले सिर भार । 
त्यों रज्जब सब राम पर, मै तल मरे गँवार ॥
झूठे सुख को सुख कहै, मानत है मन गोद । 
खलक चबीणां काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ॥
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सूता काल जगाइ कर, सब पैसैं मुख मांहि ।
दादू अचरज देखिया, कोई चेतै नांहि ॥३६॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी जीव, अपने ही सकाम कर्मों द्वारा, पाप - पुण्य फल भोग - बन्धन में उलझ कर, काल को जगाकर काल के मुख में पड़ते हैं ॥३६॥
दोइ पुरुष मग जात थे, देख्यो सोवत नाग । 
इक बरजै इक लात दी, खात मर्यो उहि जाग ॥
दृष्टान्त ~ दो पुरुष रास्ते जा रहे थे । आगे रास्ते में काला सर्प सो रहा था । एक ने कहा ~ सर्प सो रहा है । दूसरे ने कहा, मरा हुआ है । उसने कहा ~ लात मत मारना, जीवित है । उसने ज्यों ही लात मारी कि सर्प ने डस लिया और वह वहीं मर गया ।
(क्रमशः)

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