शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

इन्द्री अपने वश करे १०/५५


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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अंग १०/५५*
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*इन्द्री अपने वश करे, सो काहे याचन जाय ।*
*दादू सुस्थिर आतमा, आसन बैसे आय ॥५५॥*
दृष्टांत - 
उली पास गया पातस्या, लीन्हें हाथ समेट ।
अरु जयसिंह द्विज सैंन द्वै, जल पथरी सु चपेट ॥७॥
उली एक बादशाह का प्रधान मंत्री था । बादशाह अधिक कामुक होने से अन्तःपुरी में ही पड़ा रहता था । राज्य का प्रबन्ध सब उली ही करता था । एक दिन उली किसी विशेष परामर्श करने के लिये बादशाह के पास गया था । बहुत देर तक खड़ा रहा तब बादशाह बात करने आया । जब बादशाह से परामर्श कर रहा था तब हाथ जोड़े हुये बादशाह के सामने खड़ा था । 
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उसी समय उसके पाजामा में एक टांटिया घुसकर उसके जंघाओ को काटने लगा । बादशाह के समाने हाथ जोड़े हुये होने से वह उसे निकाल भी नहीं सका । बादशाह से परामर्श हो जाने पर बादशाह के अन्तःपुर में जाने से पीछे उसने टांटिये को निकाला और सोचने लगा - यह परतंत्रता तो दुःख रूप ही है । इसे छोड़ने से ही सुख मिल सकता है । 
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फिर उसे तीव्र वैराग्य हो गया । अतः किसी को कु़छ भी न कह कर वह वन में जाकर ईश्वर भजन करने लगा । उसके न रहने से राज्य में गड़बड़ होने लगी । बादशाह ने सुना तब पू़छा उली कहां है ? उत्तर मिला उली तो सब कु़छ छोड़कर ईश्वर भजन करने के लिये वन में चला गया है । उली का पता लगा कर बादशाह अन्य मंत्रियों के साथ उली के पास गया । 
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उली सिद्धासन से बैठा था किन्तु बादशाह आदि को आते देखकर उसने हाथों को अपनी कांखों में दबा लिये और पैर बादशाह की और फैला दिये । बादशाह ने पू़छा - हमारे को पैर कब से बतलाये ? उली - हाथ समेटे तब से । बादशाह ने उली को लौटाने के लिये बहुत आग्रह किया किन्तु उली नहीं आये । सोई उक्त ५५ की साखी में कहा है - जो अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है, वह याचना करने क्यों जायगा ।
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द्वितीय दृष्टांत - जयपुर नरेश जयसिंह अच्छे सत्संगी राजा थे । उनके पास एक ब्राह्मण उनसे मिलने को ही आये थे । राजा ने समझा कु़छ माँगने आये होंगे । उनके समाने एक जल का घड़ा रखकर कहा - आप के पूर्वज ब्राह्मण अगस्त्य ने समुद्र पान कर लिया था आप इसे घड़े को ही पान कर लीजिये । तब ब्राह्मण ने एक कंकरी उठाकर कहा - आप के पूर्वज रामचन्द्रजी ने समुद्र पर बड़ी - बड़ी शिलायें तिराई थीं आप इस कंकरी को ही तिरा दीजिये । फिर राजा समझ गये कि ये याचक नहीं है । कारण ? याचक ऐसी तर्क पूर्वक बात नहीं कह सकता । सोई उक्त ५५ की साखी में कहा है - इन्द्रियों को जीतने वाला याचना करने नहीं जाता ।
(क्रमशः)

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