शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

= सजीवन का अंग २६ =(१७/१८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*सजीवन का अंग २६* 
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*सजीवन*
*दादू साधन सब किया, जब उनमन लागा मन ।* 
*दादू सुस्थिर आत्मा, यों जुग जुग जीवैं जन ॥१७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जब यह मन ‘उनमन’ कहिये ब्रह्मी अवस्था को प्राप्त हुआ, तो पूर्व काल के सम्पूर्ण साधन स्वतः ही सिद्ध हो जाते हैं । फिर वह स्थिर बुद्धि जीव युग - युग में अमर भाव को प्राप्त होता है ॥१७॥
*रहते सेती लाग रहु, तो अजरावर होइ ।*
*दादू देख विचार कर, जुदा न जीवै कोइ ॥१८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! माया और माया के कार्य से रहित निरंजन निराकार परमेश्वर है । उसके नाम - स्मरण में अपने मन को लगाये रहो, तो फिर तुम अजर - अमर पद को प्राप्त हो जावोगे । उससे अलग रहकर कोई भी अमर नहीं होता ॥१८॥
जरा मीच व्यापै नहीं, मुवा न सुनिये कोइ ।
चल कबीर तिस देस कूँ, जहॉं वैद विधाता होइ ॥
(क्रमशः)

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