卐 सत्यराम सा 卐
साभार : Bhadra Dhokai
सोते सोते ही निकल गई सारी जिन्दगी ~*~
हाथों हाथ तूं दुख खरीद के, सुख सारे ही खोता।
कर्ज़, फ़र्ज और मर्ज़ बहाने, जीवन बोझा ढोता।
ढोते ढोते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥
जन्म लेते ही इस धरती पर, तुने रूदन मचाया।
आंख अभी तो खुल ना पाई, भूख भूख चिल्लाया॥
खाते खाते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥
बचपन खोया खेल कूद में, योवन पा गुर्राया।
धर्म-कर्म का मर्म न जाने, विषय-भोग मन भाया।
भोगों भोगों में निकल गई सारी जिन्दगी॥
शाम पडे रोज रे बंदे, पाप-पंक नहीँ धोता।
चिंता जब असह्य बने तो, चद्दर तान के सोता।
सोते सोते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥
धीरे धीरे आया बुढापा, डगमग डोले काया।
सब के सब रोगों ने देखो, डेरा खूब जमाया।
रोगों रोगों में निकल गई सारी जिन्दगी॥
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(बाल्यावस्था)
पहले पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तूँ आया इहि संसार वे ।
मायादा रस पीवण लग्गा, बिसार्या सिरजनहार वे ।
सिरजनहार बिसारा किया पसारा, मात पिता कुल नार वे ।
झूठी माया आप बँधाया, चेतै नहीं गँवार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ आया इहि संसार वे ॥१॥
(तरुण अवस्था)
दूजे पहरै रैणि दे, बणिजारिया, तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ।
माया मोह फिरै मतवाला, राम न सक्या संभाल वे ।
राम न संभाले, रत्ता नाले, अंध न सूझै काल वे ।
हरि नहीं ध्याया, जन्म गँवाया, दह दिशि फूटा ताल वे ।
दह दिशि फूटा, नीर निखूटा, लेखा डेवण साल वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ रत्ता तरुणी नाल वे ॥२॥
(प्रौढ अवस्था)
तीजे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तैं बहुत उठाया भार वे ।
जो मन भाया, सो कर आया, ना कुछ किया विचार वे ।
विचार न कीया नाम न लीया, क्यों कर लंघै पार वे ।
पार न पावे, फिर पछितावे, डूबण लग्गा धार वे ।
डूबण लग्गा, भेरा भग्गा, हाथ न आया सार वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तैं बहुत उठाया भार वे ॥३॥
वृद्धावस्था जर्जरी भूत(वृद्धावस्था)
चौथे पहरे रैणि दे, बणिजारिया, तूँ पक्का हुआ पीर वे ।
जोबन गया, जरा वियापी, नांही सुधि शरीर वे ।
सुधि ना पाई, रैणि गँवाई, नैंनहुँ आया नीर वे ।
भव-जल भेरा डूबण लग्गा, कोई न बंधै धीर वे ।
कोई धीर न बंधे जम के फंधे, क्यों कर लंघे तीर वे ।
दादू दास कहै, बणिजारा, तूँ पक्का हुआ पीर वे ॥४॥
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