सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

= सजीवन का अंग २६ =(३७/३८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*सजीवन का अंग २६*
*जीवित पाया प्रेम रस, जीवित पिया अघाइ ।*
*जीवित पाया स्वाद सुख, दादू रहे समाइ ॥३७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जीवित अवस्था में ही प्रेमा - भक्ति का अमृत पीकर, ‘अघाइ’ कहिए तृप्त रहते हैं । जीवित अवस्था में ही, जीव ब्रह्म की एकता के आनन्द का अनुभव करते हैं । इस प्रकार मुक्तजन, ब्रह्मानन्द में अभेद होकर रहते हैं ॥३७॥
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*जीवित भागे भ्रम सब, छूटे कर्म अनेक ।*
*जीवित मुक्त सद्गति भये, दादू दर्शन एक ॥३८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जीवित काल में ही जिनके अद्वैत - सत्संग द्वारा सम्पूर्ण भ्रम - संदेह दूर हो गये हैं व उनके सम्पूर्ण कर्म छूट गये हैं । ऐसे पुरुष जीते ही मुक्त होते हैं, जो एक ब्रह्म का ही व्यापक रूप से दर्शन करके सद्गति को प्राप्त हुये हैं ॥३८॥
(क्रमशः)

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