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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधू का अंग १५/८४.८८*
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*गरथ न बाँधे गांठड़ी, नहिं नारी सौ नेह ।*
*मन इन्द्री सुस्थिर करे, छाड़ सकल गुण देह ॥८४॥*
प्रा०दृष्टांत -
गल में पहरे गूदड़ी, गांठ न बाँधे दाम ।
शेख भावदी यूं कहैं, मैं तिसको करुं सलाम ॥१६॥
जो संत शीत से बचने के लिये गले में गुदड़ी पहने और धन संग्रह नहीं करे । शेख भावदी कहते है में ऐसे विरक्त संतों को प्रणाम करता हूँ । सोई उक्त ८४ की साखी में कहा है । इस दोहे में कथा रूप दृष्टांत का संकेत तो नहीं ज्ञात होता किन्तु परम विरक्तों की और संकेत है और वही संकेत उक्त ८४ की साखी में हें । ऐसे शुकदेव, दत्तात्रेय आदि संत सर्व पूज्य होते हैं । यही संकेत है ।
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*साहिब का उनहार सब, सेवक मांही होइ ।*
*दादू सेवक साधु सो, दूजा नांही कोइ ॥८८॥*
दृष्टांत -
मारवाड़ मधि कोउ नृप, बांटा सब को त्याग ।
ता सौं इक चारण कहा, नर नारी सुत भाग ॥१७॥
मारवाड़ के राजा ने दान के अधिकारियों को त्याग बांटा था अर्थात दान दिया था । एक चारण देर से आया और उसने राजा से अपना, अपनी स्त्री और अपने पुत्र का भाग भी मांगा । राजा ने कहा - तुम देर से आये, त्याग तो बँट चुका और स्त्री, पुत्र तो आये भी नहीं हैं, उनका भाग कैसे मांगते हो ? तब उस चारण ने नीचे लिखे दो सोरठे राजा को सुनाये ।
सोरठा - प्रा० -
पगा जु तेही पाण, पुण्य पाणि पहले पिवे ।
पंगु जु तेही ठांण, पीया चाहै मालवणि ॥१८॥
बेटा बाप तिणांह, चील्हां जे चाले नहीं ।
जननी ताहि जणाह, बुरी कहावै वैरिसल ॥१९॥
अर्थात् हे मालवणि नृप ! जैसे जिस पशु के पैरों में शक्ति हो वह तो दौड़कर पहले पाणी पी लेता है किन्तु जो कमजोर हो वह पीछे जाकर पीता है और पंगु हो वह अपने ठाण पर रहते हुये भी तो पानी पीना चाहता है । वैसे ही मैं पहले नहीं पहुँच सका तो भी दान तो चाहता हूँ । स्त्री, पुत्र नहीं आये तो जैसे पंगु पशु को उसके ठाण पर ही पानी दिया जाता है, वैसे ही नहीं आने योग्यों को उनके घर पर भी पहुँचा दिया जाता है ।
आपके पिता तो घर बैठों को भी देते थे । पुत्र भी वही श्रेष्ठ होता है जो पिता के अनुसार चले और पिता के अनुसार नहीं चले तो हे वैरिसल ! जननी उस पुत्र को जन्म देकर बुरी ही कहलाती है । अतः आपको पिता के अनुसार ही करना चाहिये । सोई उक्त ८८ की साखी में कहा हैं । अपने स्वामी के अनुसार सेवक का व्यवहार होना चाहिये । ऐसा होता है वही सेवक साधु अर्थात श्रेष्ठ माना जाता है । दूसरा श्रेष्ठ नहीं माना जाता ।
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