बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

= सजीवन का अंग २६ =(४१/४२)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
*सजीवन का अंग २६*
*जीवित प्रकट ना भया, जीवित परिचय नांहि ।*
*जीवित न पाया पीव को, बूड़े भवजल मांहि ॥४१॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जीवित अवस्था में ही आवरण से रहित नहीं हुए, जीवित काल में स्वस्वरूप परिचय नहीं किया और जीवित अवस्था में ही अपने पालन करने वाले परमेश्वर का अपरोक्ष दर्शन नहीं हुआ, तो वे अज्ञानी संसार - समुद्र में ही डूबते हैं ॥४१॥ 
*जीवित पद पाया नहीं, जीवित मिले न जाइ ।* 
*जीवित जे छूटे नहीं, दादू गये विलाइ ॥४२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! इस मनुष्य शरीर में निर्वाण पद, कहिए स्वस्वरूप में स्थित नहीं हुए,तो वे आत्म - स्वरूप परमेश्वर से नहीं मिलते और जीवित काल में कर्म - बन्धन से मुक्त नहीं हुए, तो उन अज्ञानियों का यह मनुष्य शऱीर व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है ॥४२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें