卐 सत्यराम सा 卐
महात्मा सुन्दरदास जी कहते हैं ~
सदगुरु महिमा कहन को, मन बहुत लुभाया ।
मुख में जिव्हा एक ही, तातैं पछताया ॥
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साभार : Kripa Shankar B ~
सर्वश्रेष्ठ हितैषी
सर्वश्रेष्ठ हितैषी
किसी भी साधक का सर्वश्रेष्ठ हितैषी उसका सद्गुरु होता है । सद्गुरु से बढकर किसी का भी कल्याण चाहने वाला अन्य कोई नहीं होता । सद्गुरु का सम्बन्ध शाश्वत होता है । वे न सिर्फ अपने शिष्य को भगवद् प्राप्ति का उपाय बताते हैं बल्कि उसके साथ साथ साधना भी करते हैं, और उसकी भावी विपदाओं और सांसारिक समस्याओं से रक्षा भी करते हैं । गुरु को समर्पित की हुई साधना में कोई त्रुटी भी रह जाए तो सद्गुरु उसमें शोधन कर देते हैं ।
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किसी भी साधक को अपनी साधना का सिर्फ २५ प्रतिशत ही पूर्ण निष्ठा से करना होता है । २५ प्रतिशत सद्गुरु करता है । बाकि ५० प्रतिशत जगन्माता की असीम करुणा से उसे फल मिल जाता है । पर स्वयं के भाग का २५ प्रतिशत तो हर साधक को शत प्रतिशत करना पड़ता है ।
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वास्तविक आध्यात्मिक जीवन को पाने के लिए हर क्षण गुरु प्रदत्त साधना के सहारे जीना आवश्यक है । जब आप जीवन में विपरीततम परिस्थितियों से घिर जाओ, कहीं आशा की किरण दिखाई न दे, चारों ओर अंधकार ही अंधकार हो तब आपके गुरु ही हैं जो आप का साथ नहीं छोड़ते । बाकि सारी दुनिया आपका साथ छोड़ दे पर गुरु कभी आप का साथ नहीं छोड़ सकते । आप ही उन्हें भुला सकते हो पर वे नहीं । उनसे मित्रता बनाकर रखो उनका साथ शाश्वत है । वे आपके आगे के भी सभी जन्मों में आपके साथ रहेंगे ।
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अपनी सारी पीडाएं, सारे दु:ख, सारे कष्ट उन्हें सौंप दो । उन्हें मत भूलो, वे भी आपको नहीं भूलेंगे । निरंतर उनका स्मरण करो । आपके सुख दुःख सभी में वे आपके साथ रहेंगे । अपने ह्रदय का समस्त प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दो ।
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'गु' शब्द का अर्थ है --- अन्धकार, और 'रू' अर्थ है दूर करने वाला ।
जो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करते हैं वे ही गुरु हैं । शिष्य को गुरु का निरंतर ध्यान सहस्त्रार में करना चाहिए....
ॐ परात्पर गुरवे नम: । ॐ परमेष्टि गुरवे नमः । ॐ नम:शिवाय ।
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किसी भी साधक को अपनी साधना का सिर्फ २५ प्रतिशत ही पूर्ण निष्ठा से करना होता है । २५ प्रतिशत सद्गुरु करता है । बाकि ५० प्रतिशत जगन्माता की असीम करुणा से उसे फल मिल जाता है । पर स्वयं के भाग का २५ प्रतिशत तो हर साधक को शत प्रतिशत करना पड़ता है ।
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वास्तविक आध्यात्मिक जीवन को पाने के लिए हर क्षण गुरु प्रदत्त साधना के सहारे जीना आवश्यक है । जब आप जीवन में विपरीततम परिस्थितियों से घिर जाओ, कहीं आशा की किरण दिखाई न दे, चारों ओर अंधकार ही अंधकार हो तब आपके गुरु ही हैं जो आप का साथ नहीं छोड़ते । बाकि सारी दुनिया आपका साथ छोड़ दे पर गुरु कभी आप का साथ नहीं छोड़ सकते । आप ही उन्हें भुला सकते हो पर वे नहीं । उनसे मित्रता बनाकर रखो उनका साथ शाश्वत है । वे आपके आगे के भी सभी जन्मों में आपके साथ रहेंगे ।
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अपनी सारी पीडाएं, सारे दु:ख, सारे कष्ट उन्हें सौंप दो । उन्हें मत भूलो, वे भी आपको नहीं भूलेंगे । निरंतर उनका स्मरण करो । आपके सुख दुःख सभी में वे आपके साथ रहेंगे । अपने ह्रदय का समस्त प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दो ।
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'गु' शब्द का अर्थ है --- अन्धकार, और 'रू' अर्थ है दूर करने वाला ।
जो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करते हैं वे ही गुरु हैं । शिष्य को गुरु का निरंतर ध्यान सहस्त्रार में करना चाहिए....
ॐ परात्पर गुरवे नम: । ॐ परमेष्टि गुरवे नमः । ॐ नम:शिवाय ।
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