॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*नूर तेज ज्यों जोति है, प्राण पिंड यों होइ ।*
*दृष्टि मुष्टि आवै नहीं, साहिब के वश सोइ ॥९१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिनका पिंड योगाभ्यास से नूररूप, तेजरूप, ज्योतिरूप हो गया है, किसी के देखने में, किसी के पकड़ने में, वे नहीं आते हैं । वे साहिब रूप ही होते हैं ॥९१॥
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*स्वकीयमित्र शत्रुता*
*मन ही मांही ह्वै मरै, जीवै मन ही मांहि ।*
*साहिब साक्षीभूत है, दादू दूषण नांहि ॥९२॥*
टीका ~ यह जीव रूप मन, नाना प्रकार की वासनाओं के द्वारा ही तो मरता है और आप ही निर्वासनिक होकर सजीवन भाव को प्राप्त हो जाता है । अधिष्ठान चैतन्य साक्षी रूप है, उसे किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं लगता है ॥९२॥
‘मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्ध - मोक्षयोः ।’
(क्रमशः)
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