#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“नवम - तरंग” ३३-३४)*
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*सर में रास्ता बना दिया विचित्र लीला*
आप कही अब नांहि डरो तुम,
फर्शहिं नीर चढे नहिं काई ।
साँझ भई पुर माँहिजु आवत,
संत सता करि नीर फटाई ।
बीच भयो मग, बाहर आवत,
देखत एकहि ताल समाई ।
देखि सबै नर होत अचम्भित,
या विधि दोय समै दिखलाई ॥३३॥
तब स्वामीजी ने धीरज देते हुये कहा - डरो मत, यह जल संतधाम के भीतर नहीं आयेगा । जल से घिरे हुये संतधाम पर लगभग पच्चीस सेवक भक्त सन्ध्या तक साँभर नगर में जाने की प्रतीक्षा करते रहे, किन्तु जलभराव के कारण मार्ग नहीं मिला । तब स्वामीजी ने अपने तपोबल से जल के मध्य मार्ग बनाया, लोगों को जलभराव के बीच उभरी हुई जमीन दिखने लगी । सभी सेवक उस मार्ग से पार होकर साँभर शहर के किनारे पहुँचे, तो वह मार्ग लुप्त हो गया । सर्वत्र एक समान पुन: जल हो गया । सभी लोग देखकर अचम्भित हो गये । ऐसी लीला स्वामीजी ने दो बार दिखाई ॥३३॥
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*माला और हरी लौंग दी*
विट्ठल दास जु ब्राह्मण सेवक,
टेक करी गुरु भक्ति करीजे ।
एक समै परचो मन देखत,
शंक भई गुरु मालहु दीजे ।
स्वामि जु माल दई तिनकूं इक,
लौंग हरी तब ही तिन दीजे ।
धन्य हु दादु दयालु कृपानिधि,
भक्त मनोरथ पूरण कीजे ॥३४॥
विट्ठलदास ब्राह्मण सेवक ने गुरुभक्ति करते हुये एक दिन मन में संकल्प किया कि - मुझे भी स्वामीजी परचा दिखावें, यदि स्वत: ही माला और हरे लौंग का प्रसाद दे दें, तो मेरा कल्याण हो जाय । स्वामीजी उसके मन की भावना जान गये, और उन्होंने माला तथा हरे लौंग देकर भक्त का मनोरथ पूर्ण किया ॥३४॥
(क्रमशः)
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