मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

= न. त./३३-३४ =

#daduji

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ 
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~ 
*(“नवम - तरंग” ३३-३४)* 
*सर में रास्ता बना दिया विचित्र लीला* 
आप कही अब नांहि डरो तुम, 
फर्शहिं नीर चढे नहिं काई । 
साँझ भई पुर माँहिजु आवत, 
संत सता करि नीर फटाई । 
बीच भयो मग, बाहर आवत, 
देखत एकहि ताल समाई । 
देखि सबै नर होत अचम्भित, 
या विधि दोय समै दिखलाई ॥३३॥ 
तब स्वामीजी ने धीरज देते हुये कहा - डरो मत, यह जल संतधाम के भीतर नहीं आयेगा । जल से घिरे हुये संतधाम पर लगभग पच्चीस सेवक भक्त सन्ध्या तक साँभर नगर में जाने की प्रतीक्षा करते रहे, किन्तु जलभराव के कारण मार्ग नहीं मिला । तब स्वामीजी ने अपने तपोबल से जल के मध्य मार्ग बनाया, लोगों को जलभराव के बीच उभरी हुई जमीन दिखने लगी । सभी सेवक उस मार्ग से पार होकर साँभर शहर के किनारे पहुँचे, तो वह मार्ग लुप्त हो गया । सर्वत्र एक समान पुन: जल हो गया । सभी लोग देखकर अचम्भित हो गये । ऐसी लीला स्वामीजी ने दो बार दिखाई ॥३३॥ 
*माला और हरी लौंग दी* 
विट्ठल दास जु ब्राह्मण सेवक, 
टेक करी गुरु भक्ति करीजे । 
एक समै परचो मन देखत, 
शंक भई गुरु मालहु दीजे । 
स्वामि जु माल दई तिनकूं इक, 
लौंग हरी तब ही तिन दीजे । 
धन्य हु दादु दयालु कृपानिधि, 
भक्त मनोरथ पूरण कीजे ॥३४॥ 
विट्ठलदास ब्राह्मण सेवक ने गुरुभक्ति करते हुये एक दिन मन में संकल्प किया कि - मुझे भी स्वामीजी परचा दिखावें, यदि स्वत: ही माला और हरे लौंग का प्रसाद दे दें, तो मेरा कल्याण हो जाय । स्वामीजी उसके मन की भावना जान गये, और उन्होंने माला तथा हरे लौंग देकर भक्त का मनोरथ पूर्ण किया ॥३४॥
(क्रमशः)

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