🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*साधू का अंग १५/७५*
.
*दादू मैं दासी तिहिं दास की, जिहिं संग खेलें पीव ।*
*बहुत भांति कर वारणे, तापर दीजे जीव ॥७५॥*
दृष्टांत -
साधु एक चौपाड़ में, उतरा लोक समाज ।
मारन ऊठा असुर हो, मै नृसिंह तव काज ॥१३॥
हरियाणा प्रान्त के एक ग्राम की चौपाड़ - पंचायत भवन में एक संत आकर ठहरे थे । रात्रि के समय उसमें ग्राम के लोग आने लगे और जो आवे सोई संत को बैठे हुये हों वहां से उठा दे । वे दूसरी जगह जाकर बैठे वहां से भी उठा दें । ऐसे करते - करते एक ने संत से नाम पू़छा । उन्होंने बताया प्रहलाद है । तब वह बोला - तो फिर मैं तेरे लिये हिरण्यकशिपु हूँ ।
यह कहकर उनके चोट मारना चाहा तो उनमें से एक खड़ा होकर बोला - मैं हिरण्यकशिपु के लिये नृसिंह हूँ । तब हिरण्यकशिपु बनने वाला डर गया और संत की रक्षा हो गई । सोई उक्त ७५ की साखी में कहा है - जो प्रभु के भक्त हों उन पर अपना जीव भी निछावर करना चाहिये । जैसे उक्त संत के लिये नृसिंह बनने वाले ने किया था ।
.
तापर दीजे जीव पर ही द्वितीय दृष्टांत -
सालेरी तन मन तजा, हरि संतन के भाय ।
ता पुण्य भई मंदोदरी, लंकापति के जाय ॥१४॥
एक समय एक ॠषि आश्रम में किसी कारण से अनेक ॠषि एकत्र हुये थे । उनके लिये एक वृक्ष के नीचे खीर बनाई थी । बनाने वाला कड़ाही को छोड़कर किसी कार्यवश पास ही गया था । उसी समय में वृक्ष की शाखा से एक काला सर्प खीर की कड़ाही में जा पड़ा । खीर बनानेवाले को इसका पता नहीं लगा किन्तु उसी वृक्ष की दूसरी शाखा पर बैठी हुई एक सालेरी - गिलहरी देख रही थी । उसने सोचा - इस खीर को ये ॠषि खायेंगे तो सब मर जायेंगे । अतः इनकी रक्षा के निमित्त मेरा एक का मरना ही अच्छा है ।
.
फिर जब पंक्ति बैठी तब वह गिलहरी जोर से बोलती हुई उस खीर की कड़ाही में जा पड़ी । तब सब ॠषियों ने कहा - अब यह खीर खाने योग्य नहीं रही है, इसे पृथ्वी पर डाल दो । उसे डालने लगे तो उसमें काला सर्प निकला तब ॠषि समझ गये कि इस गिलहरी ने हमारी रक्षा के लिये अपने प्राण दिये हैं । अतः सबने उसे शुभाशीर्वाद दिये । उसी पुण्य के प्रताप से वह गिलहरी दूसरे जन्म में रावण की पत्नी मंदोदरी बनी थी । सोई उक्त ७५ की साखी में कहा है कि ईश्वर भक्तों के लिये अपना जीव भी दे देना चाहिये । जैसे उक्त गिलहरी ने दिया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें