*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“दशम - तरंग” १७-१८)*
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*सीकरी जाने की आज्ञा*
प्रातहिं बात कही गुरु शिष्यन,
पंथ प्रयाण विचार भयो है ।
बेर नहीं चलबे करु उद्यम,
संतन को उपदेश दियो है ।
संतहि दास दमोदर दास जु,
द्वारिक दास हु बैन कह्यो है ।
दास गरीब हिं सेव करो तुम,
धाम रहो इत नाम लह्यो है ॥१७॥
प्रात: होते ही स्वामीजी ने कहा - सीकरी गमन के लिये ईश्वर आज्ञा प्राप्त हो गई है, अब बिना विलम्ब किये प्रयाण करना चाहिये । संतदास, दामोदर दास और द्वारिकादास को आदेश दिया कि - तुम यहीं रहकर गरीबदास का ध्यान रखना, संत धाम आश्रम की व्यवस्था संभालना, नाम जपते रहना ॥१७॥
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*सात शिष्यों को सीकरी का आदेश*
टीलहु चाँद सुधी जगजीवन,
लाहुरि श्याम अरू जगदीशा ।
धर्म हु दास लियो सुगना पुनि,
ये शिष सातहु संग मुनीशा ।
प्रात भये तब सूरज आवत,
जोरत पाणि नवावत शीशा ।
आप कही - हम सीकरि आवत,
जाय कहो सब बात महीशा ॥ १८॥
टीलाजी, चांदा दास, जगजीवन, लाहोरी श्यामदास, जगदीश, धर्मदास, सुगनाराम इन सात शिष्यों को संग चलने का आदेश दिया । इतने में सूरजसिंह खींची आकर सेवा में उपस्थित हो गया । उसने हाथ जोड़कर शीश नवाया । तब स्वामीजी ने फरमाया - हम सीकरी आरहे हैं, तुम आगे जाकर आमेर - नरेश को सूचित कर दो ॥१८॥
(क्रमशः)
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