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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधू का अंग १५/७६*
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*दादू लीला राजा राम की, खेलें सब ही संत ।*
*आपा पर एकै भया, छूटी सबै भरंत ॥७६॥*
प्रसंग कथा -
टौंक पधारे महोच्छे, आप लगाया भोग ।
जब शिष पू़छा तब कही, या साखी यह जोग ॥१५॥
माधवकाणी और नरहरिदास जी के निमन्त्रण से दादूजी टोंक संत सम्मेलन में पधारे थे । दादूजी का आना सुनकर संत तथा भक्त लोग बहुत संख्या में आ गये थे । भोजन सामग्री कम जानकर माधवकाणी दादूजी के पास गये और बोले - इस समय आप ही मेरी लज्जा रखें ।
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दादूजी ने कहा - सबकी लज्जा परमेश्वर रखते हैं, आपकी लज्जा भी वे रखेंगे किन्तु आप यह तो बताओ आप पर इस समय क्या कष्ट है ? माधवकाणी ने कहा - समुदाय को देखते हुये भोजन सामग्री अति अल्प है और अब पंक्ति का समय होने वाला है । किसी भी प्रकार पंक्ति के समय तक इतनी सामग्री तैयार करने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ ।
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माधवकाणी के उक्त वचन सुनकर दादूजी ने कहा - चिन्ता मत करो निरंजन देव पास ही हैं । आपने जो - जो सामग्री बनाई हैं, उनमें से सभी थोड़ी - थोड़ी एक थाल में रखकर शुद्ध श्वेत कपड़े से ढँककर यहां ले आओ । माधवकाणी ले आये । दादूजी ने प्रभु से प्रार्थना की कि - अपने भक्त माधव की लज्जा अवश्य रखें । फिर भोग लगाकर माधवजी को देकर कहा - यह जो - जो वस्तु जिसमें से लाये है उसी में मिला दें । प्रभु की कृपा से कमी नहीं आयेगी ।
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फिर वह भोजन सामग्री अटूट हो गई और सात दिन तक चली । इस चमत्कार को देखकर संत सम्मेलन में आये थे, उन सभी ने दादूजी के हाथ के प्रसाद लेना चाहा तब दादूजी ने एक क्षण में ही अनन्त शरीर धारण करके सब को प्रसाद दे दिया था । यह चमत्कार देखकर टीलाजी ने पू़छा - यह लीला कैसे हुई तब दादूजी ने उक्त ७६ की साखी सुनाई थी ।
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