गुरुवार, 2 जनवरी 2014

जे कु़छ भावे राम को १०/३८

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अंग १०/३८*
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*जे कु़छ भावे राम को, सो तत कह समझाय ।* 
*दादू मन का भावता, सब को कहे बनाय ॥३८॥*
दृष्टांत - 
मिश्र कथा प्रतिदिन करे, मांस दोष कह नांहि । 
एक दिवस सुत कह दिई, नरक जांहिं जे खांहि ॥६॥ 
एक मिश्र एक राजा को कथा सुनाने प्रतिदिन जाते थे । राजा मांस खाता था । इससे वे मांस का प्रसंग कभी नहीं सुनाते थे । एक दिन किसी कारण से मिश्र नहीं जा सके और अपने पंडित पुत्र को कथा सुनाने भेज दिया । दैवयोग से आज कथा में मांस निषेध और मांस के दोषों का ही प्रसंग आ गया । 
मिश्र के पुत्र ने वह सब भली भांति सुनाया और कहा - मांस खाने वाले नरक में जाते है । राजा मांस खाता था अतः उसे अति दुःख हुआ । इससे आज कथा समाप्त होने पर राजा ने भेंट भी नहीं चढ़ाई । मिश्र पुत्र खाली हाथों ही गया । मिश्र ने पू़छा क्या भेंट दी ? उसने कहा - भेंट तो कु़छ नहीं दी । मिश्र - प्रसंग क्या था ? पुत्र - मांस निषैध । उस प्रसंग से राजा नाराज हो गया है । 
दूसरे दिन मिश्र गया और राजा को प्रिय लगने वाली कथा सुनाई । राजा ने कहा - कल तुम्हारे पंडित पुत्र ने नई ही कथा सुनाई और कहा - मांस खाने वाले नरक में जाते हैं । मिश्र ने कहा - जो कभी कभी खाते हैं वे नरक में जाते हैं, प्रतिदिन खाने वाले नहीं जाते । अतः आप तो प्रतिदिन खाते हैं इससे नरक में न जाकर स्वर्ग में जायेंगे । राजा प्रसन्न हो गया और गत दिन भेंट नहीं दी थी वह दी और आज प्रतिदिन से अधिक ही दी । सोई उक्त ३८ की साखी में कहा है कि और तो सब को प्रिय लगने वाली ही कथा कहते हैं किन्तु संत तो राम को प्रिय लगे वही कहते हैं ।
(क्रमशः)

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